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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या किसानों का इस्तेमाल किया जा रहा हैं?

 -By Nidhi Jain  किसान आंदोलन का आज 14वां दिन है। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर यानी बीते दिन भारत बंद का ऐलान किया था। बहरहाल 26 नवंबर को किसान जब दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे तो तब उन्होंने कहा था कि उनका आंदोलन राजनीति से दूर होगा व जब किसान सरकार से बात करने पहुंचे थे तो तब भी उनके साथ कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी लेकिन उसके बाद भारत बंद को बीस राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया। कई पार्टियों, राजनेता, फिल्म कलाकार व खिलाड़ियों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया परन्तु यह पार्टियां किसानों की हितैषी हैं या फिर यह पार्टियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए ऐसा कर रही हैं ? यह तो समय आने पर ही पता चलेगा। यह सब जो किया जा रहा है यह किसानों का समर्थन है या केवल भारत का विरोध? इसका धीरे-धीरे खुलासा तो हो ही जाएगा तथा भारत बंद का समर्थन करने वाली पार्टियों मे सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस थी। जिसमें मौजूदा लोकसभा में कांग्रेस के 51 सांसद हैं। समाजवादी पार्टी और एनएसपी के भी 5 सांसद हैं, इसके अलावा आम आदमी पार्टी का 1, बहुजन समाजवादी पार्टी के 10, शिरोमणि अकाली दल के 2 सांसद हैं लेकिन शिवसेना ...

आखिरकार कब मिलेगा निजात?

 -By Nidhi Jain  देश में कोरोना वायरस के आंकड़े प्रतिदिन बढ़ते जा रहे है. लोग अब इस महामारी से त्रस्त हो चुके है. चीन के वुहान शहर से उपजे कोरोना वायरस ने देश में अभी तक 97 लाख से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है. यह वायरस पहले तो लोगों को हल्की बीमारी जैसे सर्दी जुकाम से अपनी चपेट में लेता है. लेकिन धीरे-धीरे करके इंसान की जान तक ले लेता है. परन्तु अभी तक इस वायरस की रोकथाम के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं हुई है. हालांकि तमाम कम्पनियां यह दावा कर रही है कि उनकी वैक्सीन इस दौड़ में सबसे आगे है. भारत में वायरस की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा तमाम कोशिशें की जा रही है. जिसके चलते सरकार ने सभी गैर आवश्यक कार्य पर रोक लगा दी थी और लोगों को अपने घरों में रहने के निर्देश दिये थे. हालांकि भारत सरकार ने पूरे देश में 17 मई तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी. जिसे बढ़ा कर 31 मई कर दिया गया था लेकिन अब धीरे-धीरे करके सब चींजे खुल ही गई है. वहीं इस प्रकोप को एक दर्जन से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महामारी घोषित किया गया है और महामारी रोग अधिनियम, 1897 के प्रावधानों को लागू किय...

जनता ही हैं अंतिम निर्णायक

 -By Nidhi Jain  गेहूँ न ही फैक्ट्री में उपजते हैं, कम्प्यूटर न ही धान बनाता हैं, जिस दिन देश यह समझ जाएगा उस दिन हकीकत में किसानों का मान बढ़ेगा। सब्ज़ी सस्ती सबको चाहिए लेकिन अगर किसान मरे तो शिकायत भी होती है। बहरहाल एक समय वह भी था जब देश के अन्नदाता नोटों पर हुआ करते थे परन्तु आज तो वह सड़कों पर बैठने को मजबूर हैं। सवाल तो यह उठता है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी भारत को बंद की राजनीति से आगे नहीं बढ़ जाना चाहिए? क्या बंद करने की बजाय शुरू करने पर ध्यान नहीं देना चाहिए? देश बंद, राज्य बंद, सड़क बंद, बाज़ार बंद, इससे क्या हासिल होगा, इससे सिर्फ हमारा यानी देश का ही नुकसान होता है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था ही पीछे होगी। कई न कई अंग्रेजों के ज़माने में तो यह रणनीति ठीक भी थी लेकिन यह चिट्ठियों का नहीं, ईमेल का ज़माना है, नारों का जमाना नहीं वाईफाई का हैं। इसलिए आज देश भर के संगठनों और राजनीतिक पार्टियों को यह सोचना चाहिए कि आंदोलनों को आधुनिक और सकारात्मक कैसे बनाया जा सकता है। 1947 में जब भारत आजाद हो गया था व 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी और यह अध्याय यहीं समाप...

पारंपरिक दवाओं के शोध का वैश्विक केंद्र

 -by Nidhi jain  प्रतिदिन चीन अपनी नामाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। वह कुछ ना कुछ ऐसा जरूर कर देता है कि फिर उसे भारत से मुंह की खानी ही पढ़ती हैं और अब हालही में भारत ने पारंपरिक दवाओं के शोध के वैश्विक केंद्र खोलने की विश्व स्वास्थ्य संगठन की घोषणा की है, जो कि चीन पर भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा सकता है। पारंपरिक दवाओं के वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात चीन के निर्यात का लगभग पांच फीसद है जो अवश्य ही जाहिर करता है कि वैश्विक शोध केंद्र खुलने के बाद आयुर्वेदिक दवाओं को आधुनिक चिकित्सा पद्धति रूप में न सिर्फ वैश्विक मान्यता मिलेगी, बल्कि दुनिया के वैश्विक बाजार में धाक भी जमेगी। जिससे चीन भयावह हो चुका हैं। पारंपरिक दवाओं के वैश्विक बाजार में चीन की पकड़ को देखते हुए डब्ल्यूएचओ का भारत में शोध केंद्र खोलने का ऐलान सामान्य घटना तो बिल्कुल भी नहीं है जिसकि दूरगामी असर होगा। पारंपरिक दवाओं के वैश्विक बाजार में चीन के दबदबे को इस बात से समझा जा सकता है, कि उसकी तुलना में भारतीय पारंपरिक दवाओं का निर्यात महज पांच फीसद के आसपास है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से वैश्व...

पालघर के साधुओं को इंसाफ कब?

 -by Nidhi jain  आज 200 दिन से भी अधिक हो चुके है लेकिन अभी तक महाराष्ट्र के पालघर में 16 अप्रैल को हुई दो साधुओं और एक ड्राइवर की हत्या के गुनहगारों को सजा नहीं मिली है. पालघर जिले के कासा इलाके में उस रात चोरी के शक में 70 साल के कल्पवृक्ष गिरी, 35 वर्ष के सुशील गिरी व 30 साल के उनके ड्राइवर नीलेश तेलगाडे, जो कि ओमानी वैन से सूरत जा रहे थे, तो तब उन्हें पालघर से 100 किलोमीटर दूर स्थित गढ़चिंचले गांव में भीड़ ने उनकी गाड़ी से बाहर खींच लिया और इसके बाद, उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. गौरतलब है कि पालघर जैसी घटना महाराष्ट्र के औरंगाबाद में भी हुई है. जहां प्रियशरण महाराज के आश्रम में घुसकर 7 से 8 अज्ञात लोगों ने उन पर हमला किया था. जिसका अभी तक इंसाफ नहीं हुआ है. रोजाना ऐसे कई अपराध होते हैं जिनमें मासूम लोगों की हत्या हो जाती है. वो लोग इन्साफ के लिए हर संभव प्रयास करते है, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें न्याय नहीं मिलता हैं. हालांकि वारदात के कुछ दिन बाद ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कार्यालय की ओर से जारी बयान में यह बताया गया था कि पुलिस ने साधुओं की हत्या के सभी आ...

जंग जारी कोरोना से!

 -by Nidhi jain  कोविड-19 ने दुनिया की तस्वीर बदल के रख दी है। मौत का आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा हैं। दुनिया भर के लोग इस महामारी से त्रस्त हो रहे हैं। वायरस के चलते देशभर में कई बार लॉकड़ाउन को बढ़ाया जा चुका है। हालांकि अभी भी कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या मे लगातार इजाफा हो रहा हैं। ऐसे में इस संक्रमण को रोकने के लिए सरकार तमाम एहतियातन कदम उठा रही है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या से काफी दिक्कतें सामने आ रही है, क्योंकि देश में संसाधन सीमित है और आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही हैं व हमारा देश विकसित देशो की तुलना में ओर पिछड़ता जा रहा हैं। लॉकडाउन में ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था की वजह से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए है एंव रोजगार उनसे छिन गया हैं। बहरहाल इन सब पर रोक तभी लगेगी जब लोग सावधानी बरतेगें और सख़्त नियमों का पालन करेंगे तथा जब कोरोना की काट मिल जाएगी यानी कोविड़-19 की वैक्सीन उत्पन्न हो जाएगी। देश के वैज्ञानिक और डॉक्टर लगातार तपस्या कर रहे हैं कि कोरोना की वैक्सीन बन जाए, व कोरोना की तीन वैक्सीन्स का ट्रायल देश में चल भी रहा है। खुशखबरी तो यह है कि कोरोना वायरस के खिला...

सब कर रहें अनदेखी!

 -by Nidhi jain  देश में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लोग इस महामारी से त्रस्त हो चुके है और हालात गंभीर होती नजर आ रही हैं लेकिन इस बीच भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने कोरोना महामारी के प्रकोप और इसके प्रबंधन पर राज्य सभा को एक रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें प्राइवेट अस्पतालों के रवैये पर कई सवाल उठाए गए हैं कि जिस समय देश में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे थे, तो तब प्राइवेट अस्पतालों में मरीज़ों से इलाज के नाम पर बढ़ा चढ़ा कर पैसे लिए जा रहे थे व इस बात पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी का फ़ायदा प्राइवेट अस्पतालों को मिला और इससे लोगों पर इलाज का आर्थिक बोझ काफ़ी बढ़ गया हैं एंव समिति ने अपने आकलन में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सरकार ने इलाज के रेट को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी नहीं किए, जिससे प्राइवेट अस्पतालों को खुली छूट मिल गई हैं और अगर सरकार ने इलाज के रेट तय किए होते तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी लेकिन समिति ने आबादी के लिहाज से देश के स्वास्थ्य बजट को भी काफ़ी कम बताया है तथा स्वास्थ्य मंत्रा...

रौशनी फैलाने के नाम पर भ्रष्टाचार का जाल!

 -by Nidhi jain  देश में घोटाले होने कोई नई बात नहीं है लेकिन कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दा होते है जिन्हें उतना नहीं उठाया जाता जितना की उसके गुनहगारों को दंड़ मिलना चाहिए।बहरहाल जम्मू-कश्मीर के इतिहास में भी सबसे बड़ा ऐसा ही घोटाला है, जो है रोशनी ज़मीन घोटाला। इस समय हर कोई जम्मू-कश्मीर में रोशनी जमीन घोटाले में शामिल हुए लोगों की लिस्ट की ही चर्चा कर रहा हैं। क्योंकि जैसे जैसे कार्रवाई आगे बढ़ रही है वैसे ही कई नेताओं, उनके रिश्तेदारों, अधिकारियों और बड़े व्यापारियों के नाम इस घोटाले में शामिल होने के सबूत मिल रहे है। गौरतलब है कि इस सोचे समक्षे घोटाले से सरकार को कई करोड़ो का नुक्सान हुआ है, जिन पैसों से हर घर में बिजली पहुंचने वाली थी, हर घर में उजाला होने वाला था आज उन्ही पैसों का कई लोग गलत उपयोग कर रहे हैं। वर्ष 2001 में फारूक अब्दुल्ला जब जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने विधानसभा में रोशनी एक्ट पास किया गया था जिसका मकसद यह था कि जिनके पास निश्चित समय के लिए सरकारी जमीन लीज पर है या कोई चालीस वर्ष से सरकारी जमीन पर रह रहा है तो यह जमीन हमेशा के लिए उन्हें दे ...

वैक्सीन के बाद क्या मिलेगी राहत?

 -by Nidhi jain  कहने को तो देश में अनगिनत बीमारियां हैं, जिन से रोजाना हजारों लोग प्रभावित होते हैं परंतु किसी का समाधान निकलता है तो किसी का नहीं, किसी बीमारी का प्रकोप पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लेता है तो वहीं कई बीमारियां ऐसी भी हैं जिनके बारे में कोई जानता ही नहीं है। बहरहाल दुनिया में इस समय 112 से ज्यादा ऐसी संक्रामक बीमारियां मौजूद हैं जो वायरस, बैक्टीरिया या पैरासाइट के कारण फैलती है जिनसे हर साल करीब 1 करोड़ 70 लाख लोगों की मौत होती है लेकिन पिछले 200 वर्षों में इनमें से सिर्फ एक ही बीमारी है जिसको जड़ से मिटाया जा सका है और वो है स्मॉल पॉक्स। यह सफलता वर्ष 1980 में मिली थी परन्तु इसके अलावा इंसानों को होने वाली ऐसी कोई संक्रामक बीमारी नहीं है जिसे जड़ से खत्म किया गया हो। हालांकि दुनिया भर के वैज्ञानिक तमाम कोशिशे कर रहे हैं कि कोरोना वायरस को भी जड़ से समाप्त कर दिया जाए लेकिन यह कैसे और कब होगा इस बारे में अब भी पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि, आम तौर पर एक वैक्सीन को तैयार करने में 5 से 10 वर्ष लग जाते हैं और अगर वैश्विक महामारी कोरोना की वैक्स...

बॉर्डर पर अब भी क्यों बैठे हैं?

 -by Nidhi Jain  कहते हो हमें देश से प्यार है लेकिन वो देखो खेतो में गेहूं, चावल उगाने वाले, सबके अन्नदाता कहलवाने वाले, उमसती घूप में काम करने वाले आज सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, पिछले छह-सात दिनों से, शीतकालीन में खुले आसमान के नीचे हजारों सख़्या में किसान अपनी मांगों को पूरा करने के लिए यातायात व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं जिससे आम लोगों को काफी परेशानी हो रही हैं। सरकार की ओर से लाए गए किसानों के लिए तीनों कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा हैं, कृषक कानून के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, सरकार के असहयोगी विरोध कर रहे है लेकिन मोदी सरकार अपने फैसले पर अटल हैं। सरकार के बनाए गए कानून एक देश एक बाजार से किसान खुश नहीं है। सरकार का कहना है कि अब किसान अपनी उगाइ हुई फसल को कई भी किसी भी राज्य में अपने तय मानक के हिसाब से बेच सकते है, जिसके बाद यह जरूरी नहीं है कि सरकार द्वारा बनाईं गई एपीएमसी में ही किसान अपनी फसल बेचेगा व उपज होने से पहले ही कृषक अपनी फसल का सौदा कर सकते हैं, जिनसे उन्हें ड़र नहीं होगा, चिंता नहीं होगी कि उनकी पैदावार कौन खरीदेगा। एंव तीसरे कानून में यह सशोधन क...