सब कर रहें अनदेखी!
-by Nidhi jain
देश में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लोग इस महामारी से त्रस्त हो चुके है और हालात गंभीर होती नजर आ रही हैं लेकिन इस बीच भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने कोरोना महामारी के प्रकोप और इसके प्रबंधन पर राज्य सभा को एक रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें प्राइवेट अस्पतालों के रवैये पर कई सवाल उठाए गए हैं कि जिस समय देश में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे थे, तो तब प्राइवेट अस्पतालों में मरीज़ों से इलाज के नाम पर बढ़ा चढ़ा कर पैसे लिए जा रहे थे व इस बात पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी का फ़ायदा प्राइवेट अस्पतालों को मिला और इससे लोगों पर इलाज का आर्थिक बोझ काफ़ी बढ़ गया हैं एंव समिति ने अपने आकलन में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सरकार ने इलाज के रेट को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी नहीं किए, जिससे प्राइवेट अस्पतालों को खुली छूट मिल गई हैं और अगर सरकार ने इलाज के रेट तय किए होते तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी लेकिन समिति ने आबादी के लिहाज से देश के स्वास्थ्य बजट को भी काफ़ी कम बताया है तथा स्वास्थ्य मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने इलाज के ख़र्च के चलते कई परिवारों के ग़रीबी रेखा के नीचे जाने पर भी चिंता जाहिर की है। सोचने वाली बात तो यह है कि जिस समय देश के लोग कोरोना के ख़िलाफ़ एकजुट हो कर लड़ रहा थे, तो उस समय प्राइवेट अस्पतालों में मरीज़ों को इलाज के नाम पर भारी भरकम बिल चुकाने पड़े और जिन मरीज़ों के पास पैसे नहीं थे, उन्हें न तो सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी की वजह से इलाज मिल पाया और न ही प्राइवेट अस्पतालों में उन्हें जगह दी गई। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस संकट की घड़ी में ग़रीब व मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए सारे दरवाज़े बंद हो गए हैं। एक तरफ वह आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तो दूसरी और वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे हैं।
एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि अगर किसी व्यक्ति को कोरोना होने पर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया जाता है तो उसका एक हफ़्ते का इलाज का औसत ख़र्च ढाई से तीन लाख रुपये बन जाता है व भारत की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो साल भर में भी अगर मेहनत और मन लगा कर काम करे तो वह इतने पैसे नहीं कमा सकता। वर्ष 2018-19 में भारत में 5 करोड़ 78 लाख लोगों ने अपना इनकम टैक्स रिटर्न भरा था। इनकम टैक्स विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक़ 4 करोड़ 32 लाख लोगों की ही सालाना इनकम पांच लाख रुपये तक है यानी यकीनन कोरोना का इलाज किसी व्यक्ति की साल भर की कमाई को खत्म भी कर सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की 2019 की एक रिपोर्ट में भी बताया गया है कि ग्रामीण भारत में क़रीब 25 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है, जो शहरी भारत में यह आंकड़ा 14 प्रतिशत के आसपास है। जिसका स्पष्ट मतलब है कि भारत की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने के बारे में सोच भी नहीं सकता और जो लोग इलाज करा सकते हैं, उनके लिए भी स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं है क्योंकि, अगर सलाना तीन लाख रुपये कमाने वाला व्यक्ति यह राशि प्राइवेट अस्पतालों का एक हफ़्ते का बिल चुकाने में लगा देता है तो उसके सामने भूखा मरने की नौबत तक आ जाएगी जो स्थिति उसके लिए मौत से भी बदतर हो सकती है। गौरतलब है कि लोगों की लापरवाही को देखते हुए दिल्ली में मास्क नहीं लगाने पर जुर्माने की राशि 500 रुपये से बढ़ा कर दो हज़ार रुपये तक कर दी गई है, जिस पर लोगों में नाराज़गी है लेकिन आज़ादी का दुरुपयोग कैसे किया जाता है, वो भी तो दिल्लीवासी दिखा रहे हैं। जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक मास्क, सैनिटाइजर और 2 गज की दूरी लोगों की जान बचा सकती है लेकिन आम जनता इन नियमों का पालन बिल्कुल भी नहीं कर रही है। भारत के लोग अपनी आजादी का गलत उपयोग कर रहें हैं और नियमों को अनदेखी की जा रहीं हैं अर्थात समूचे विश्व को यह समझना होगा कि जब तक कोरोना वायरस की काट नहीं मिल जाती तब तक ढिलाई नहीं बरतनी हैं।