कौन भरेगा 814 करोड़ का नुकसान?
किसान आंदोलन की आड़ में जहां कई लोगों ने अपना उल्लू सीधा किया तो वहीं 16 मार्च तक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआइ को 814 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। 4 महीने से भी अधिक समय से दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर तीनों कृषि कानूनों के विरोध में धरना प्रदर्शन जारी है। इस बीच सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली की सीमा में अब कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों की संख्या में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। सिंघु बॉर्डर-नरेला रोड पर ट्रैक्टरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। यहां पर प्रदर्शनकारियों की संख्या में इजाफा होने के पीछे नया एंगल है। दरअसल, कुछ लोग यहां पर होला मोहल्ला मनाने आएं हैं तो कुछ कथित तौर पर ड्यूटी करने। वहीं, पंजाब के कुछ किसान जुर्माने के डर से भी आ रहे हैं। इसके चलते यहां पर प्रदर्शनकारियों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। पंजाब के गांवों के प्रधानों ने एक फरमान जारी कर रखा है कि, हर परिवार का एक सदस्य महीने में कम से कम एक बार सिंघु बॉर्डर पर जरूर आएगा और दस दिन यहीं पर रहेगा। ऐसा न करने पर परिवार पर जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसे में जो लोग यहां नहीं आना चाहते, उन्हें भी मजबूरन आना पड़ता है, क्योंकि यहां नहीं आए तो जुर्माने के रूप में जेब ढीली करनी पड़ेगी। हालांकि लगातार ऐसा कहा जा रहा है कि विदेशी फंडिंग से यहां पर प्रदर्शनकारियों को सुविधा दी जा रही हैं। इसलिए न तो उनके आने-जाने का कोई खर्च आता है और न ही खाने-पीने का। 10 से 15 दिन एक क्षेत्र के लोग सिंघु बॉर्डर पर रहते हैं और अगले 15 दिन अलग क्षेत्र के लोग।आलम तो ये है कि सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली की सीमा में सभी प्रदर्शनकारी पंजाब के हैं। यहां पर न तो कोई प्रदर्शनकारी हरियाणा का है और न राजस्थान या यूपी का। इनमें भी बुजुर्ग ही हैं, युवाओं ने तो इनसे कन्नी काट रखी है। 26 जनवरी को लाल किले पर किए गए उपद्रव के बाद नेताओं ने उन्हें गद्दार कहा था। तब से लेकर अब तक यहां युवा नहीं आ रहे हैं। गौरतलब है कि आंदोलन के चलते ज्यादातर नुकसान पंजाब और हरियाणा के टोल प्लाजा पर हुआ है। पंजाब में सबसे ज्यादा 487 करोड़, हरियाणा में 326 करोड़ और राजस्थान में 1.40 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि अन्य किसी राज्य में किसानों के प्रदर्शन के चलते नुकसान की खबर नहीं है लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर कौन इस नुकसान की भरपाई करेंगा?