क्या किसानों का इस्तेमाल किया जा रहा हैं?

 -By Nidhi Jain 

किसान आंदोलन का आज 14वां दिन है। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर यानी बीते दिन भारत बंद का ऐलान किया था। बहरहाल 26 नवंबर को किसान जब दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे तो तब उन्होंने कहा था कि उनका आंदोलन राजनीति से दूर होगा व जब किसान सरकार से बात करने पहुंचे थे तो तब भी उनके साथ कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी लेकिन उसके बाद भारत बंद को बीस राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया। कई पार्टियों, राजनेता, फिल्म कलाकार व खिलाड़ियों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया परन्तु यह पार्टियां किसानों की हितैषी हैं या फिर यह पार्टियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए ऐसा कर रही हैं ? यह तो समय आने पर ही पता चलेगा। यह सब जो किया जा रहा है यह किसानों का समर्थन है या केवल भारत का विरोध? इसका धीरे-धीरे खुलासा तो हो ही जाएगा तथा भारत बंद का समर्थन करने वाली पार्टियों मे सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस थी। जिसमें मौजूदा लोकसभा में कांग्रेस के 51 सांसद हैं। समाजवादी पार्टी और एनएसपी के भी 5 सांसद हैं, इसके अलावा आम आदमी पार्टी का 1, बहुजन समाजवादी पार्टी के 10, शिरोमणि अकाली दल के 2 सांसद हैं लेकिन शिवसेना जो कि भारत बंद का समर्थन कर रही है, उसके पास लोकसभा में 18 सांसद हैं। भारत बंद का समर्थन करने वाली दूसरी पार्टियों के 40 सांसद हैं और अगर इन सांसदों की संख्या जोड़ दी जाए, तो बंद को 133 सांसदों वाली 20 से ज़्यादा पार्टियों का समर्थन मिला था। जिसका स्पष्ट मतलब है कि लोकसभा के कुल 543 सांसदों में से सिर्फ 24 प्रतिशत सांसदों की पार्टियां भारत बंद के साथ थी। वहीं
देश में किसानों की संख्या लगभग 15 करोड़ है, परन्तु इनके नाम पर राजनीति करने वाले नेता भारत बंद करके देश के 138 करोड़ लोगों को बंधक बनाने की कोशिश कर रहे थे। गौरतलब है कि एक दिन के भारत बंद से लगभग 32 हज़ार करोड़ रुपए का नुकसान होता है। हालांकि यह सिर्फ एक अनुमान है असली आंकड़े तो इससे कई अधिक हो सकता हैं। भारत में लगभग 20 करोड़ परिवार हैं और अगर हम 32 हज़ार करोड़ रुपए को इन 20 करोड़ परिवारों में बांटे तो हर एक परिवार को औसतन 1600 रुपए का नुकसान होगा व 1600 रुपए कमाने में भारत के किसानों को लगभग 8 दिन लग जाते हैं। चिंता पूर्ण विषय है तो यह है कि देश के 32 हज़ार करोड़ रुपए का नुकसान हर किसी पर पड़ेगा। हालांकि लोकतंत्र में बहुमत की इच्छा मानी जाती है लेकिन यहां जो सांसद अल्पमत में हैं। वो पूरा देश बंद कर देना चाहते हैं और जिस सरकार को देश के संविधान ने संप्रभुता के साथ फैसले लेने की ताकत दी, उसे संसद की जगह सड़क पर चुनौती दी जा रही है। परन्तु सवाल तो यह उठता है कि क्या राजनीतिक फायदे के लिए देश के किसानों का इस्तेमाल किया जा रहा है? क्या संविधान को संसद की जगह सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया गया है?

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