कोरोना से भी बड़ा खतरा है मेंटल हेल्थ, क्या कहती है डब्लूएचओ की रिपोर्ट ?

-निधि जैन 

दुनिया में बढ़ती मानसिक बीमारियों को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्लूएचओ) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें उन्होंने कई चौकाने वाले खुलासे किए है। बता दें कि इस बीमारी को सबसे तेज फैलने वाली बीमारी की श्रेणी में रखा गया है, दिन प्रतिदिन यह बीमारी युवाओं से लेकर बड़ों तक में देखी जा रही है और इसका असर लोगों की जिंदगी और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। एंग्जाइटी और डिप्रैशन, कॉमन मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियां हैं जो आने वाली पीढी में तेजी से फैल रही है।


किन देशों में तेजी से फैल रही है ये बीमारी

गौरतलब है कि मेंटल हेल्थ की बीमारी उन देशों में ज्यादा देखी जा रही है जहां लोगों की कमाई न्यूनतम है या थोड़ी कम है लेकिन डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में मेंटल हेल्थ से जुड़े केस हाई इनकम वाले देशों में ज्यादा रिपोर्ट किए गए हैं। जिसकी वजह है कि विकसित देशों में अन्य देशों के मुकाबले इस बीमारी को लेकर ज्यादा जागरुकता होना।
बता दें कि बढ़ती मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियां, देश की इकॉनमी पर भी बुरा असर डाल रही है। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम कि रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक मानसिक बीमारियों पर कम से कम 6 ट्रिलियन डॉलर के खर्च का अनुमान है। इसके अलावा 2.5 ट्रिलियन डॉलर मानसिक बीमारियों पर खर्च होता है जिसमें से लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी बीमारी पर होने वाला खर्च है।

केस में बढ़ोतरी का मुख्य कारण, कोरोना भी

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि वैश्विक महामारी कोरोना ने डिप्रेशन और एंग्जाइटी को और बढ़ाया है। बता दें कि कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में, मेटल हेल्थ के केस 1 साल में 26% से 28% ज्यादा दर्ज हुए है।
वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में 13% लोग यानी करीब 1 बिलियन लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा 82% लोग मिडिल या लो इनकम वाले देशों में निवास करते हैं जहां मानसिक बीमारी को लेकर व अन्य स्वास्थ बीमारी को लेकर कम सुविधाएं उपलब्ध है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महिलाओं के मुताबिक पुरुषों में, डिप्रेशन और एंग्जाइटी के ज्यादा केस पाए जाते हैं। वहीं बच्चों में पाए जाने वाली कॉमन मानसिक बीमारी है डवलपमेंट डिसऑर्डर।

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