भूख से जंग जारी!
वर्ष 2020 में आम जनता के साथ-साथ बड़े से बड़े राजनेता, बॉलीवुड स्टार व हर एक वो हस्ती जो अपने आप को सबसे उच्च मानती थी वह तक त्रस्त हुई हैं। चीन से उप्जे कोरोना वायरस ने समूचे विश्व के लोगों को अपनी औकात दिखा दी कि वायरस के प्रकोप के सामने हर कोई बराबर हैं।
चिंता पूर्ण विषय तो यह है कि कोरोना वायरस एक खतरनाक वैश्विक महामारी जरूर है लेकिन वास्तविकता में इसकी मारक क्षमता एक महामारी से बहुत कम है, जिस महामारी का नाम है भूख। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस बात का खुलासा हुआ है कि पूरे विश्व में हर वर्ष जितने लोगों की मृत्यु ऐड़स, टीबी और मलेरिया से नहीं होती उससे अधिक लोग भूख की वजह से ना चाहते हुए भी अपनी जान लाचारी में गवा देते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरे संसार में हर साल भूख की वजह से 90 लाख लोगों की मौत हो जाती है। हालही में बीते वर्ल्ड फूड डे के मौके पर ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने भी भारत के आंकड़े जारी किए गए हैं।
जिस इंडेक्स में साफ-साफ भारत की स्थिति को देखकर उन लोगों को शर्म और पीड़ा होनी चाहिए जो भोजन की बर्बादी करते हैं। 2020 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में कुल 107 देशों को शामिल किया गया था जिसमें भारत 94वें नंबर पर है। जो बेशक़ ही शर्मनाक हैं जबकि इस रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और यहां तक की तंजानिया, बुर्किना फासो और इथियोपिया जैसे पिछड़े हुए और छोटे-छोटे देशों की स्थिति भी भारत से बेहतर है। बच्चों के कुपोषण के मामले में भी भारत दुनिया में पहले नंबर पर है जबकि पिछले साल भारत इस इंडेक्स में 117 देशों की लिस्ट में से 102 नंबर पर था। जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि इन मामलों में भारत की स्थिति बिल्कुल भी नहीं सुधर रही है बल्कि और नीचे ही गिरती जा रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के अनुसार तो पूरी दुनिया में पैदा होने वाली जनता में से 33 प्रतिशत की थाली में तो भोजन कभी पहुंच ही नहीं पाता है। करीब 45 प्रतिशत फल और सब्जियां लोगों तक पहुंचने से पहले ही बेकार हो जाती हैं, 35 प्रतिशत सी-फूड और तीस प्रतिशत अनाज का भी यही हाल होता है, जबकि बीस प्रतिशत दूध से बने उत्पाद और बीस प्रतिशत मीट भी लोगों का पेट भरने के काम नहीं आता। जिसको कुछ खुदगर्ज़ लोग कई ना कई बरबाद कर रहे होते हैं। जब कुछ लोग अपनी जिंदगी में भूख के कारण लाचार इधर-उधर भटक रहे होते हैं तो वहीं कई लोग खाने का दुर्पयोग भी करते हैं। गौरतलब है कि अगर पूरी दुनिया में बर्बाद होने वाले भोजन का सिर्फ 25 प्रतिशत भी बचा लिया जाए तो दुनिया भर के 82 करोड़ भूखे लोगों का पेट भरा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पूरी दुनिया में हर वर्ष बर्बाद होने वाले भोजन का वजन 130 करोड़ टन से भी अधिक ज्यादा होता है। जो कि चार हजार एम्पायर स्टेट बिल्डिंग और 70 लाख ब्लू व्हेल के वजन के बराबर हैं। और तो और विकसित देशों में करीब 47 लाख करोड़ रुपये की कीमत का भोजन बर्बाद होता हैं। जो अवश्य ही आपत्तिजनक हैं जबकि विकासशील देशों में 22 लाख करोड़ रुपये का खाना हर साल बर्बाद हो जाता है। जिस पर कोई ध्यान नहीं देता।
एक रिसर्च में पता चला है कि भारत के गांवों में 63 प्रतिशत लोग ऐसे भी है जो पौष्टिक भोजन खरीद ही नहीं सकते व देश के गांवों में रहने वाले हर 10 में से 6 व्यक्तियों को पोषक तत्वों वाला आहार नहीं मिलता है एंव ग्रामीण इलाके में पोषक तत्वों से भरपूर एक आदर्श थाली की कीमत औसतन 45 रुपये होती है परन्तु गरीबी की वजह से ज्यादातर ग्रामीण इतना भी खर्च नहीं कर पाते। जिसका मतलब है कि एक तरफ भारत में जहां करोड़ों लोग आज भी हर रात भूखे सोने के लिए मजबूर हैं वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों को भरपेट खाना मिलता है उन्हें यह भी नहीं पता है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं?
कुल मिलाकर एक बात यह है कि जिन लोगों को भरपूर खाना मिलता है उन लोगों को खाने की कदर ही नहीं रह जाती।
-निधि जैन