सब भूल गए!
दिल को चीर देने वाली घटनाए रोजाना सामने आ रही हैं।युवती का रेप करने के बाद राक्षस उसकी हत्या कर देते है, शैतान है यह जो रुक ही नहीं रहें, लाश को तेजाब से नहला देते है। युवती की पहचान मिटाने के लिए चेहरा तेजाब से जलाया जाता है। जिसके बाद बेटी की लाश भयावह रूप मे मिलती है। जिन्हें देखकर आत्मा कांप उठ जाती है।
निर्भया के बाद जब कानून में बदलाव किया गया था तो एक्सपर्ट्स ने उम्मीद जताई थी कि इस तरह के अपराधों में कमी आएगी लेकिन दरिंदगी में कोई कमी नहीं आई है, लगता है कानून का कोई डर ही नहीं है लोगों में। जान की कीमत चुकाकर, लम्बे संघर्ष के बाद भारत को आज़ादी मिली थी, करोड़ों हिंदुस्तानी एक होकर सत्य के लिए लड़े और जीते भी। जान की बाजी लगाकर हमें अपनी आजादी की रक्षा करनी चाहिए लेकिन ऐसी आजादी किस काम की जहां हमारे घर की बच्चियाँ ही सुरक्षित न हो। लगभग डेढ़ महीना पहले हाथरस में एक तूफ़ान आया था।
जहां बड़ा सा बड़ा राजनेता आया था अपने आप को लाइमलाइट में लाने के लिए क्योंकि उस समय पूरी मीडिया का ध्यान वही केंद्रित था लेकिन अब वहां पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ है। हाथरस पहुंचने के लिए कई नेताओं ने मीडिया के सामने ड्रामा किया था, नेताओं ने हाथरस पहुंचकर पीड़ित परिवार के साथ ली गई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर डाली थी व दूसरी तरफ वहां मौजूद हर पत्रकार पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए क्रांतिकारी पत्रकारिता कर रहा था यानी कुल मिलाकर सब न्याय के ठेकेदार बनना चाहते थे। पत्रकारों और नेताओं में इस बात की होड़ लगी हुई थी कि सबसे पहले पीड़ित परिवार तक कौन पहुंचेगा परन्तु अब यह सब लोग हाथरस को पूरी तरह भुला चुके हैं।
नेताओं ने हाथरस की घटना के बाद 24 घंटे का भी इंतजार नहीं किया था और राजनैतिक पर्यटन के लिए रातों रात हाथरस पहुंच गए थे व हाथरस पहुंचने के लिए इन नेताओं ने पुलिस के सारे बंदोबस्त तोड़ दिए थे एंव बिना देर किए आरोपियों और पीड़ित की जाति ढूंढ ली थी। राहुल गांधी की भी वह तस्वीरें सामने आई थी जहां वह पुलिस द्वारा रोकने के बावजूद भी पैदल ही हाथरस की तरफ बढ़ रहे थे। नेता जयंत चौधरी को तो हाथरस जाने के लिए पुलिस की लाठियां तक खानी पड़ी थी, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के चहेरे पर हाथरस में स्याही तक फेंक दी गई थी लेकिन फिर भी यह सभी नेता हाथरस पहुंचे थे। इन्होंने पीड़ित परिवार को गले लगाया था, आंसू बहाए, तस्वीरें खिंचवाई व उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भी डाला गया जो खूब वाहवाही बटोर रही थी और दूसरी तरफ मीडिया भी किसी भी कीमत पर नेताओं से पहले पीड़ित परिवार तक पहुंचना चाहती थी।
जिसके लिए पत्रकारों ने हाथरस से बूलगढ़ी गांव में एक तरह से अपने कैम्प डाल दिए थे, पत्रकार उन्हें रोकने वाली पुलिस से लड़ रहे थे, बहस कर रहे थे, सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा रहे थे, कैमरा ऑन होते ही पत्रकार दिखाने लगते थे कि उनकी भागदौड़ में कोई कमी नहीं है लेकिन कुछ ही दिनों में मीडिया ने हाथरस की घटना से टीआरपी का सारा रस निचोड़ लिया और मीडिया के कैमरे वापस स्टूडियोज में लौट आए लेकिन इन सबका क्या फायदा हुआ हाथरस की पीड़िता को तो अब तक न्याय नहीं मिला ना और वैसे भी हमारे देश में यह परंपरा है कि एक खबर को कुछ दिनों के बाद ही भुला दिया जाता है क्योंकि तब उस खबर में टीआरपी नहीं मिलती चैनलों को।
गौरतलब है कि हाथरस कांड के बाद भी अपराधी का दुःसाहस कम नहीं हो रहा है। रोजाना कई न कई यह दरिंदगी हो ही रही हैं जहां गुनहगार खुले घुम रहे है और लड़कियों की जिंदगी बरबाद हो रही है।नाबालिग लड़कियों का गैंगरेप कर उन्हें सिगरेट से, तेजाब से, पेट्रोल आदि से जलाया जाता है ताकि उनकी पहचान न हो। पुलिस भी आरोपियों को गिरफ्तार कर लेती है लेकिन क्या गुनहगारों को अपनी करनी पर शर्म आती हैं? लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि हम कैसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं। जहां इतनी क्रूरता, देखकर दानव भी इंसानों से घबरा जाए।
-निधि जैन