अभिशाप का अंत सिर्फ साढ़े चार महीने में
कोविड़-19 महामारी से लोग त्रस्त हो चुके हैं लेकिन कोरोना को लेकर अब एक खुशखबरी सामने आई है कि भारत में अगले वर्ष फरवरी तक कोरोना काबू में आ सकता है क्योंकि पिछले महीने 17 तारीख से देश में कोविड-19 संक्रमण के नए मामलों में लगातार कमी आ रही है। वैसे अभी तक लगभग 75 लाख भारतीय इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं व आईआईटी हैदराबाद के एक एक्सपर्ट पैनल के अनुसार, फरवरी में वायरस पर पूरी तरह से काबू पाया जा सकता है एंव संक्रमितों की संख्या भी 1.06 करोड़ तक पहुंच सकती है।
हालांकि, पैनल ने यह साफ भी कह दिया है कि अगर लोगों ने लापरवाही बरती और एहतियातन कदमों पर ध्यान नहीं दिया तो यह अनुमान गलत भी साबित हो सकता हैं। बहरहाल एक राहत भरी खबर यह भी है कि यूरोप के बेल्जियम में कोरोना वैक्सीन का उत्पादन भी शुरू हो गया है। जिससे कयास है कि कोरोना की काट जल्द उत्पन्न हो जाएगी। दवा बनाने वाली अमेरिकी कंपनी फाइजर ने कोरोना वैक्सीन के लाखों डोज का उत्पादन अपने बेल्जियम प्लांट में शुरू कर दिया है व फाइजर का दावा है कि इस साल के अंत तक कंपनी दस करोड़ डोज तैयार भी कर लेगी एंव हर मरीज को वैक्सीन के दो डोज दिए जाएंगे तथा फाइजर जर्मनी की बायोटेक के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन के लिए 44 हजार लोगों पर ट्रायल भी कर रही है ताकि वायरस की काट जल्द बन सकें। कंपनी नवंबर में अमेरिका में वैक्सीन की आपातकालीन मंजूरी के लिए आवेदन भी करेगी। जिससे फाइजर वैक्सीन को लॉन्च करने की रेस में सबसे आगे हो जाएगी।
हालांकि, ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की जा रही वैक्सीन एस्ट्राजेनिका, तीसरे चरण में है और जिसके दिसंबर में आने की पूर्ण संभावना है। गौरतलब है कि विश्व में इस वैश्विक महामारी ने क्या नहीं किया, सदी के इस सबसे भयानक वायरस से बिन त्यौहार भी सबसे ज्यादा रौनक में रहने वाली गलियां को सूना कर दिया, लोगों के आने-जाने, घूमने पर पाबंदी लग गई, चेहरे पर ना चाहते हुए भी मास्क आ गया, हाथों में रोजाना सैनिटाइजर की खुशबू रहने के लिए विवश हैं और तो और दिल में दहशत बढ़ती जा रही हैं, परन्तु अब जानलेवा वायरस के वार के करीब आठ महीने बाद महामारी के अंत की एक उम्मीद लोगों के हृदय में जगाने वाली खबरें आ रही हैं, जिसमें दावा किया जा रहा है कि अगले साढ़े चार महीने में कोविड़-19 की रफ्तार पर निषेध लग सकता है मतलब जिस बीमारी से भारत में अब तक कई हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है उस वायरस के संक्रमितों के नए मामलों में अब आने वाले समय में पूरी तरह से विराम लग सकता है यानी इन साढ़े चार महीनों में कोरोना के करीब 26 लाख मामले और बढ़ सकते हैं।
इस भयावह वायरस के खात्मे का संकेत देने वाली रिपोर्ट साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री के एक पैनल ने तैयार की है व आईआईटी हैदराबाद के इस प्रोफेसर एम विद्यासागर की अगुवाई वाली एक्सपर्ट कमेटी में आईआईटी, आईआईएससी बेंगलुरु, आईएससी कोलकाता और सीएमसी वेल्लोर के वैज्ञानिक भी शामिल हैं एंव यह रिपोर्ट एक मैथेमेटिकल मॉडल पर बेस्ड है, जिसके तहत पाया गया है कि भारत में लगभग तीस फीसदी आबादी में कोरोना के एंटीबॉडीज मौजूद हो सकते हैं, जबकि दो महीने पहले यह आंकड़ा 14 फीसदी था जिसका मतलब स्पष्ट है कि अब महामारी की रफ्तार कम हो रही है तथा कोविड़-19 संक्रमितों के प्रतिदिन केस पर ध्यान दिया जाए तो यह पता चलेगा कि इस वायरस के मामलों की गिरावट पिछले महीने 18 सितंबर से ही प्रारंभ हो गई थी व 17 सितंबर को 97,894 की तादाद के साथ इस वायरस के मामले अपने चरम पर पहुंचने के बाद कम होने लगे एंव एक महीने बाद यानी 16 अक्टूबर को यह आंकड़ा गिरकर 62,212 तक पहुंच गया।
पिछले शनिवार तक तो भारत में कोरोना की पॉजिटिविटी रेट में गिरावट आकर यह 6.37 फीसदी तक आ गई थी जो यकीनन ही समूचे विश्व के लिए उत्साहवर्धक खबर हैं और एकर्सपर्ट कमेटी ने भी अनुमान लगाया है कि फरवरी 2021 के आखिर तक कोरोना पर पूर्ण रूप से काबू पाने के साथ महामारी से होने वाली मृत्यु दर भी घटकर 0.04 फीसदी पर आ जाएगी। एक्सपर्ट कमेटी का यह भी मानना है कि संसार में मार्च का पहला लॉकडाउन बिल्कुल सटीक था व अगर उस समय लॉकडाउन नहीं लगाया जाता तो कोरोना अपना और भी भीषण कहर बरपा सकता था एंव सही समय के लॉकड़ाउन के कारण ही जून महीने तक 1.4 करोड़ से अधिक मामले सामने नहीं आए और अगर मार्च में लॉकड़ाउन नहीं लगाया जाता तो बेशक़ ही जून तक हमारे इस देश में 26 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती थी।
वहीं अगर मार्च की जगह अप्रैल और मई में लॉकडाउन लगाया गया होता तो भी यकीनन स्थिति ओर भयावह हो सकती थी व जुलाई तक तो 50 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके होते, अगस्त तक 7-10 लाख लोगों की जान भी चली गई होती, परन्तु मार्च में लगे लॉकडाउन से मृत्यु दर बेकाबू नहीं हो पाई। हालांकि, अब तक देश में 1.14 लाख लोगों की जान भी जा चुकी हैं। वहीं कोरोना की स्टडी करने वाली कमेटी का यह भी कहना है कि इस वायरस के सक्रमंण पर रोक सिर्फ तभी लगेगी जब अगर लोग सावधानियां बरतने में कोताही बरतेगे वरना सभी अनुमान फेल भी हो सकते हैं।
मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग, ट्रेसिंग और क्वारंटीन ही एक मात्र रास्ता हैं, जो देश को कोरोना जैसे जानलेवा संकट से बाहर ला सकता है क्योंकि अब देश में फिर से लॉकडाउन भी नहीं लगाया जा सकता, पहले से ही भारत की अर्थव्यवस्था रोजाना नीचे गिरती जा रही हैं। कूल मिला के राहत भरी खबर यह है कि चीन से निकला अभिशाप अब अपने अंत की ओर बढ़ रहा है दरकार तो यह है कि सिर्फ अब साढ़े चार महीने के सब्र की देरी हैं।
-निधि जैन
हालांकि, पैनल ने यह साफ भी कह दिया है कि अगर लोगों ने लापरवाही बरती और एहतियातन कदमों पर ध्यान नहीं दिया तो यह अनुमान गलत भी साबित हो सकता हैं। बहरहाल एक राहत भरी खबर यह भी है कि यूरोप के बेल्जियम में कोरोना वैक्सीन का उत्पादन भी शुरू हो गया है। जिससे कयास है कि कोरोना की काट जल्द उत्पन्न हो जाएगी। दवा बनाने वाली अमेरिकी कंपनी फाइजर ने कोरोना वैक्सीन के लाखों डोज का उत्पादन अपने बेल्जियम प्लांट में शुरू कर दिया है व फाइजर का दावा है कि इस साल के अंत तक कंपनी दस करोड़ डोज तैयार भी कर लेगी एंव हर मरीज को वैक्सीन के दो डोज दिए जाएंगे तथा फाइजर जर्मनी की बायोटेक के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन के लिए 44 हजार लोगों पर ट्रायल भी कर रही है ताकि वायरस की काट जल्द बन सकें। कंपनी नवंबर में अमेरिका में वैक्सीन की आपातकालीन मंजूरी के लिए आवेदन भी करेगी। जिससे फाइजर वैक्सीन को लॉन्च करने की रेस में सबसे आगे हो जाएगी।
हालांकि, ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की जा रही वैक्सीन एस्ट्राजेनिका, तीसरे चरण में है और जिसके दिसंबर में आने की पूर्ण संभावना है। गौरतलब है कि विश्व में इस वैश्विक महामारी ने क्या नहीं किया, सदी के इस सबसे भयानक वायरस से बिन त्यौहार भी सबसे ज्यादा रौनक में रहने वाली गलियां को सूना कर दिया, लोगों के आने-जाने, घूमने पर पाबंदी लग गई, चेहरे पर ना चाहते हुए भी मास्क आ गया, हाथों में रोजाना सैनिटाइजर की खुशबू रहने के लिए विवश हैं और तो और दिल में दहशत बढ़ती जा रही हैं, परन्तु अब जानलेवा वायरस के वार के करीब आठ महीने बाद महामारी के अंत की एक उम्मीद लोगों के हृदय में जगाने वाली खबरें आ रही हैं, जिसमें दावा किया जा रहा है कि अगले साढ़े चार महीने में कोविड़-19 की रफ्तार पर निषेध लग सकता है मतलब जिस बीमारी से भारत में अब तक कई हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है उस वायरस के संक्रमितों के नए मामलों में अब आने वाले समय में पूरी तरह से विराम लग सकता है यानी इन साढ़े चार महीनों में कोरोना के करीब 26 लाख मामले और बढ़ सकते हैं।
इस भयावह वायरस के खात्मे का संकेत देने वाली रिपोर्ट साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री के एक पैनल ने तैयार की है व आईआईटी हैदराबाद के इस प्रोफेसर एम विद्यासागर की अगुवाई वाली एक्सपर्ट कमेटी में आईआईटी, आईआईएससी बेंगलुरु, आईएससी कोलकाता और सीएमसी वेल्लोर के वैज्ञानिक भी शामिल हैं एंव यह रिपोर्ट एक मैथेमेटिकल मॉडल पर बेस्ड है, जिसके तहत पाया गया है कि भारत में लगभग तीस फीसदी आबादी में कोरोना के एंटीबॉडीज मौजूद हो सकते हैं, जबकि दो महीने पहले यह आंकड़ा 14 फीसदी था जिसका मतलब स्पष्ट है कि अब महामारी की रफ्तार कम हो रही है तथा कोविड़-19 संक्रमितों के प्रतिदिन केस पर ध्यान दिया जाए तो यह पता चलेगा कि इस वायरस के मामलों की गिरावट पिछले महीने 18 सितंबर से ही प्रारंभ हो गई थी व 17 सितंबर को 97,894 की तादाद के साथ इस वायरस के मामले अपने चरम पर पहुंचने के बाद कम होने लगे एंव एक महीने बाद यानी 16 अक्टूबर को यह आंकड़ा गिरकर 62,212 तक पहुंच गया।
पिछले शनिवार तक तो भारत में कोरोना की पॉजिटिविटी रेट में गिरावट आकर यह 6.37 फीसदी तक आ गई थी जो यकीनन ही समूचे विश्व के लिए उत्साहवर्धक खबर हैं और एकर्सपर्ट कमेटी ने भी अनुमान लगाया है कि फरवरी 2021 के आखिर तक कोरोना पर पूर्ण रूप से काबू पाने के साथ महामारी से होने वाली मृत्यु दर भी घटकर 0.04 फीसदी पर आ जाएगी। एक्सपर्ट कमेटी का यह भी मानना है कि संसार में मार्च का पहला लॉकडाउन बिल्कुल सटीक था व अगर उस समय लॉकडाउन नहीं लगाया जाता तो कोरोना अपना और भी भीषण कहर बरपा सकता था एंव सही समय के लॉकड़ाउन के कारण ही जून महीने तक 1.4 करोड़ से अधिक मामले सामने नहीं आए और अगर मार्च में लॉकड़ाउन नहीं लगाया जाता तो बेशक़ ही जून तक हमारे इस देश में 26 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती थी।
वहीं अगर मार्च की जगह अप्रैल और मई में लॉकडाउन लगाया गया होता तो भी यकीनन स्थिति ओर भयावह हो सकती थी व जुलाई तक तो 50 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके होते, अगस्त तक 7-10 लाख लोगों की जान भी चली गई होती, परन्तु मार्च में लगे लॉकडाउन से मृत्यु दर बेकाबू नहीं हो पाई। हालांकि, अब तक देश में 1.14 लाख लोगों की जान भी जा चुकी हैं। वहीं कोरोना की स्टडी करने वाली कमेटी का यह भी कहना है कि इस वायरस के सक्रमंण पर रोक सिर्फ तभी लगेगी जब अगर लोग सावधानियां बरतने में कोताही बरतेगे वरना सभी अनुमान फेल भी हो सकते हैं।
मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग, ट्रेसिंग और क्वारंटीन ही एक मात्र रास्ता हैं, जो देश को कोरोना जैसे जानलेवा संकट से बाहर ला सकता है क्योंकि अब देश में फिर से लॉकडाउन भी नहीं लगाया जा सकता, पहले से ही भारत की अर्थव्यवस्था रोजाना नीचे गिरती जा रही हैं। कूल मिला के राहत भरी खबर यह है कि चीन से निकला अभिशाप अब अपने अंत की ओर बढ़ रहा है दरकार तो यह है कि सिर्फ अब साढ़े चार महीने के सब्र की देरी हैं।
-निधि जैन