प्रकृति के आगे सब बेबस

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन अगले वर्ष जनवरी में अपना पद छोड़ सकते हैं। वैसे पुतिन का अचानक राजनीति से मोह भंग नहीं हुआ है बल्कि उनके इस कथित फैसले के पीछे एक गंभीर बीमारी है।
दावा किया जा रहा है कि 68 वर्ष के व्लादिमिर पुतिन को पार्किंसन नाम की एक बीमारी हो गई है, और इसी बीमारी की वजह से शरीर धीरे-धीरे काम करने की क्षमता खोने लगता है व आगे चलकर मरीज की सोचने समझने की क्षमता भी बाधित हो जाती है। हालांकि रूस सरकार ने इस खबर का पूरी तरह से खंडन किया है और उनका कहना है कि पुतिन का स्वास्थ्य एकदम ठीक है और वह अपना पद नहीं छोड़ने वाले हैं लेकिन इस खबर ने तब और जोर पकड़ लिया जब रूस की संसद में व्लादिमिर पुतिन को आजीवन राजनैतिक इम्युनिटी देने वाला एक प्रस्ताव लाया गया,जो पुतिन के लिए एक तरह का अभयदान है।
इस प्रस्ताव के पास होने पर पुतिन जीवन भर सांसद के पद पर रह पाएंगे और राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी उन पर किसी भी तरह का मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा एंव इसी वर्ष जुलाई में रूस में एक जनमत संग्रह हुआ था जिसके बाद पुतिन का वर्ष 2036 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया था परन्तु अगर पुतिन के बीमार होने की खबर सही है तो यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि पुतिन के कार्यकाल में रूस ने एक बार फिर खुद को दुनिया की महाशक्ति साबित करने की कोशिश की है और अगर पुतिन अपना पद छोड़ते हैं तो यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रूस के लिए किसी बुरी खबर से कम नहीं होगी। पुतिन को पार्किंसन नामक बीमारी है इसको साबित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया में कुछ वीडियो भी दिखाए जा रहे हैं।
वीडियो को ध्यान से देखने के बाद पता चलता है कि चलने के दौरान पुतिन का सिर्फ बायां हाथ हिल रहा है जबकि दायां हाथ नहीं हिल रहा है। हाथ के मूवमेंट में आई कमी को पार्किंसन का एक बड़ा लक्षण माना जाता है। दूसरा वीडियो वर्ष 2014 का है जब पुतिन ने रूस के लेनिनग्राद में सैनिकों से मुलाकात की थी तो इस दौरान भी पुतिन के दाएं हाथ में मूवमेंट दिखाई नहीं दे रही हैं।पुतिन की उम्र 68 वर्ष है और अक्सर यह बीमारी 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को ही अपना शिकार बनाती है। पुतिन न सिर्फ राजनैतिक रूप से दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक हैं, बल्कि शारीरिक रूप से भी उन्हें सबसे फिट नेताओं में गिना जाता है। अपनी शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन अक्सर पुतिन करते रहते हैं, कभी पनडुब्बी के जरिए समुद्र में गोता लगाकर, कभी बर्फीली नदी में स्नान करके तो कभी आईस हॉकी खेलकर, पुतिन खुद को फिट और स्वस्थ साबित करते रहे हैं। लेकिन कहते हैं ना कि कोई भी व्यक्ति कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, वह समय से बलवान नहीं हो सकता और शायद आज पुतिन का सामना भी इसी सच्चाई से हो रहा है।
दुनिया की शायद ही ऐसी कोई चीज है जो पुतिन के पास नहीं होगी या जिसे पुतिन हासिल नहीं कर सकते, उनके नाम कई बड़ी बड़ी उपलब्धियां भी हैं परन्तु अगर उन्हें सच में पार्किंसन है तो शायद धीरे धीरे उनकी याददाश्त जाने लगेगी और उन्हें खुद अपनी उपलब्धियां भी याद नहीं रहेंगी।
बहरहाल पुतिन ने वर्ष 2036 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहने की तैयारी कर ली थी। 2036 तक वो 83 वर्ष के हो चुके होंगे लेकिन पुतिन की महत्वकांक्षाओं के सामने पार्किंसन की दीवार खड़ी हो गई है। पुतिन ने अपने पद की तो उम्र बढ़ा ली परन्तु उनके बीमार होने बात अगर सच है तो वह अपनी खुद की उम्र कैसे बढ़ा पाएंगे। पद, पहचान और प्रतिष्ठा के अमर होने का सपना लगभग सभी लोग देखते हैं लेकिन सच तो यह है कि हकीकत में आपके सपने की उम्र आपकी उम्र से ज्यादा नहीं होती।बीमारी के आगे सब लाचार है चाहे वह किसी भी देश के राष्ट्रपति ही क्यों न हों। व्लादिमिर पुतिन एक ऐसे राजनेता हैं जिन्हें आज शायद दुनिया के सभी साढ़े सात सौ करोड़ लोग जानते होंगे लेकिन यह बीमारी अवश्य ही उन्हें गुमनामी के अंधेरे में ले जा सकती है। इस कलयुग में सबसे बड़ा विजेता ही समय हैं जो किसी भिखारी को भी पल में करोड़पति बना सकता है और किसी करोड़पति को पल भर में भिखारी बना सकता है। समय सर्वशक्तिशाली व्यक्ति से भी शक्तिशाली होता है और मृत्यु बहादुर से बहादुर व्यक्ति को भी अपने साथ ले जाती है। जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है।
आज शायद पुतिन इसी सच्चाई को समझ रहे होंगे। पुतिन का स्वास्थ्य सच में कैसा है यह पूरी स्पष्टता से कोई नहीं कह सकता लेकिन यह बात जरूर पता है कि यह किसी के साथ भी हो सकता है और इसलिए सबको वर्तमान में जीने की आदत डालनी चाहिए। पुतिन आज उस जगह पर खड़े हैं जहां उनके पास सबकुछ है। कुछ लोग कहते हैं कि वह दुनिया के सबसे शक्तिशाली और अमीर व्यक्ति हैं, लेकिन आज जो खबर सामने आ रही है वह अगर सच है तो यह यकीनन पुतिन के सपनों का यू-टर्न है। एक ऐसा यू-टर्न जिसके रास्ते पर पुतिन को अकेले चलना होगा, सत्ता से बाहर जाना होगा , उन्हें अपनी शक्ति को क्षीण होते हुए देखना होगा और बहुत संभव है कि जो लोग आज पुतिन के साथ खड़े हैं, वह एक दिन कमजोर हो चुके पुतिन का साथ छोड़ दें। गौरतलब है कि इस समय पूरी दुनिया में करीब एक करोड़ लोग पार्किंसन से पीड़ित हैं और यह बीमारी तब होती है जब मस्तिष्क में मौजूद नर्व सैल यानी कोशिकाएं मरने लगती हैं।
यह तब होता है जब शरीर में डोपामाइन नामक रसायन की कमी होने लगती है और दिमाग में मौजूद न्यूरॉन्स की संख्या घटने लगती है। इसके लक्षण हैं हाथों और पैरों में कंपन, शरीर की मूवमेंट में गिरावट, मांसपेशियों का लचीलापन खत्म होना, शरीर का संतुलन बिगड़ने लगना, बोलने में परेशानी होना और लिखना भी मुश्किल हो जाता है व इस बीमारी के दूसरे चरण में मस्तिष्क की सोचने समझने की क्षमता कम होने लगती है और याददाश्त भी जा सकती है परन्तु यह जरूरी नहीं है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है फिजियोथेरेपी और कुछ दवाओं के जरिए इसे कुछ हद तक नियंत्रित भी किया जा सकता है परन्तु व्लादिमिर पुतिन के साथ जो हो रहा है, उसे बेशक़ प्रकृति का नियम भी कह सकते हैं। जिससे कोई भी बच नहीं सकता।
-निधि जैन

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