खाकी वालों की कदर कब
खाकी के सपूत बिन सोचे अपने बारे में दूसरों के लिए जीवन अपना कुर्बान कर देते हैं, यकीनन नहीं मिलता वह गौरव पुलिस को फिर भी वह सर्वोच्च बलिदान देते हैं। सुबह हो या शाम ड्यूटी पर तैनात रहते हैं, आंदोलन, धरना, प्रदर्शन को संभालते हैं बेशक़ लोगों की जिंदगी में फरिश्तों से कम नहीं होते खाकी रंग के फ़रिश्ते वाले वह शख्स।
पुलिस एक आम आदमी को सुरक्षा का भरोसा देती है जिससे अपराधियों के मन में खौफ पैदा होता है, लेकिन फिर भी हमारे देश में कानून की रक्षा करने वाले इन पुलिसकर्मियों को उनके हिस्से का आदर नहीं मिल पाता है। पूरे देश में हालही में पुलिस स्मृति दिवस मनाया गया था, व यह दिन वर्ष 1959 में चीनी सैनिकों के हमले में शहीद हुए भारतीय अर्धसैनिक बलों के जवानों की याद में मनाया जाता है। 21 अक्टूबर से भारत और चीन के बीच वर्ष 1962 में युद्ध शुरू हुआ था लेकिन एलऐसी पर चीन की तरफ से हमले की शुरुआत उससे पहले ही हो गई थी। 15 अगस्त 1947 से लेकर अब तक 35 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों ने अपना बलिदान दिया है। देशभर के पुलिस के जवानों ने कोविड़-19 के इस संकटकाल में लोगों की रक्षा के लिए बहुत काम किया है।
एक रिसर्च के मुताबिक देशभर में 1 लाख 35 हज़ार से अधिक पुलिसकर्मी कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और 800 से ज्यादा ने अपनी जान गंवाई है यानी हमारी सुरक्षा में पुलिसकर्मी दिन-रात लगे हुए हैं।
इन बलिदानों के बाद भी पुलिसकर्मियों को कभी उनकी सेवा का वह पुरस्कार नहीं मिल पाता, जो उन्हें मिलना चाहिए। हालांकि पुलिस सेवा में भी कुछ बुरे लोग हैं परन्तु पुलिस की छवि को खराब करने में सबसे बड़ा रोल फिल्मों का है क्योंकि अक्सर लूटपाट या हत्या होने के बाद ही पुलिस पहुंचती है। फिल्मों में पुलिसकर्मियों को रिश्वत लेते हुए दिखाया जाता है यानी फिल्मों में खाकी वर्दी का सिर्फ एक ही मतलब होता है और वो है विलेन।
गौरतलब है कि खाकी वालों जो इज्जत, सम्मान मिलना चाहिए वह अभी तक हमारे देश के पुलिस वालों को नहीं मिला हैं।
-निधि जैन