अग्निपथ योजना युवाओं के हित में है या नहीं
भारतीय सेना में नौसिखिए जवानों की संख्या से वृद्धि हो जाएगी, सशस्त्र बलों की सदियों पुरानी रेजिमेंटल संरचना बाधित हो सकती है, हर वर्ष लगभग 40 हजार युवा बेरोज़गार होंगे व योजना में भर्ती होने वाले लोगों का भविष्य क्या होगा आदि-आदि ऐसे कई ओर सवाल देश की आने वाली पीढ़ी के अंदर चल रहें है। जिसके कारण वह देश के अलग-अलग राज्यों में पथराव, रेल में आग लगाकर, सड़को पर रैली व आगजनी करके इस नई योजना का विरोध कर रहें है।
पिछले कुछ सालों से, सेना में भर्तियां रुकी हुई थीं जिसे लेकर देश के युवा, जिनके लिए सेना में भर्ती, जीवन का सबसे बड़ा सपना व नौकरी का महत्वपूर्ण ज़रिया होता है, वह सरकार से कई बार सवाल पूछ रहे थे कि जब भारतीय सेना में 97,000 पद खाली है तो, फिर भी क्यों सेना में भर्ती नहीं निकल रहीं है?
जिसके बाद, बीते दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने, घोषणा की थी कि, 'अग्निपथ' नामक योजना के तहत कम समय के लिए भारतीय सेना में युवाओं की नियुक्ति होगी। योजना के मुताबिक़, भारतीय सेना में चार सालों के लिए युवाओं की भर्तियां होंगी व नौकरी के बाद उन्हें सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा एवं उनका नाम होगा अग्निवीर तथा इस योजना में, सरकार ने दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में अग्निवीरों को पैकेज दिए जाने की बात भी कहीं है। जिसमें साढ़े 17 से 21 साल के बीच, 46,000 अग्निवीरों की भर्ती होंगी, जिनका वेतन 30-40 हज़ार रुपए प्रतिमाह के बीच होगा।
गौरतलब है कि एक ओर जहां राजनाथ सिंह ने अग्निपथ योजना को सेना के लिए आधुनिक, कायापलट कर देने वाला क़दम बताया है तो वहीं दूसरी तरफ अग्निपथ स्कीम का विरोध दिन-प्रतिदिन तेज हो रहा है, इसका विरोध सबसे ज्यादा बिहार और राजस्थान के युवा कर रहें है, उनका कहना है, जब हमनें परीक्षा देदी है और केवल भर्ती का इन्तजार कर रहें है तो आप कैसे सिर्फ इस योजना के तहत सेना में अब भर्ती करोंगे। साथ ही वह इस योजना के उस फैसले से भी नाराज है जिसमें कहा गया है कि केवल 25 प्रतिशत युवाओं को भारतीय सेना में आगे बढ़ने का मौक़ा मिलेगा जबकि बाकी को नौकरी छोड़नी होगी।
उल्लेखनीय है कि सरकार के इस फैसले से नौजवानों को सेना में सेवा करने का मौक़ा तो मिलेगा, ये योजना देश की सुरक्षा को मज़बूत करने में भी कारगर रहेंगी, युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना भी मज़बूत होंगी और युवाओं को भारतीय सेना में सेवा देने की आकांक्षा को भी पूरा किया जाएगा लेकिन सिर्फ 4 सालों तक, जिससे सैनिकों के हौसले पर भी असर पड़ सकता है।
लेकिन बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर सरकार ने केवल 4 सालों के लिए ही क्यूं ये भर्ती करने की योजना बनाई? क्या सरकार के इस क़दम का मक़सद, भारतीय सेना पर वेतन और पेंशन के बोझ को कम करना है। हालांकि इस बात पर तो लंबे समय से बहस चल ही रहीं थी कि बदलते वक़्त के साथ भारतीय सेना का नवीनीकरण कैसे किया जाए लेकिन इसे रक्षा सेना की क़ीमत पर नहीं किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि सरकार ने ऐसे में इस योजना की घोषणा की है जब देश में युवाओं को नौकरी का न मिलना एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भारत में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या है क्योंकि जिस दर पर, इस वक्त, लोगों को नौकरी की ज़रूरत है, रोज़गार उस तेज़ी से नहीं बढ़ रहा है। शहरी इलाक़ों में लंबे समय से युवाओं (15-29 साल) में बेरोज़गारी दर 20% से ऊपर है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस योजना ने युवाओं के मन में ये सवाल खड़ा कर दिया है कि अभी तो हमें रोजगार मिल जाएगा परन्तु 4 साल बाद क्या होंगा? और
वैसे भी भारतीय सेना में युवाओं का केवल चार वर्ष के लिए शामिल होना बहुत कम समय है और अगर ये अच्छा विकल्प है भी, क्योंकि सरकार जो भी कदम उठाती है विचार-विमर्श करके ही उसे लाती है, तो उस सन्दर्भ में इस योजना को उन्हें चरणों में लागू करना चाहिए था एवं युवाओं तक स्पष्ट रूप से इसकी जानकारी पहुंचानी चाहिए थी। इतने कम वक़्त में कोई युवा मिलिट्री ढांचे, स्वभाव से ख़ुद को कैसे जोड़ पाएगा। चार वर्ष में से छह महीने तो ट्रेनिंग में निकल जाएंगे, फिर वो व्यक्ति इन्फैंट्री, सिग्नल जैसे क्षेत्रों में जाएगा तो उसे विशेष ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी, जिसमें और वक़्त लगेगा। उपकरणों के उपयोग करने से पहले पूर्ण जानकारी हासिल करना भी जरूरी है, इतना वक़्त ट्रेनिंग आदि में गुज़र जाने के बाद व्यक्ति सेवा में कितना आगे बढ़ पाएगा। चार साल में वो क्या सीख पाएगा? कोई उसे हवाई जहाज़ का प्रयोग तो नहीं करने देगा तथा अगर उसको इन्फ़ैंट्री में उपकरणों की देखभाल नहीं करनी आती है तो वो वहां काम भी नहीं कर पाएंगे और अगर युद्ध में अनुभवी सैनिकों के साथ वह जाते भी हैं तो उसकी मौत पर क्या चार साल की ट्रेनिंग लिया हुआ व्यक्ति उसकी जगह लें पाएगा? क्या इन चीजों से उसकी सुरक्षा बलों की कुशलता पर असर नहीं पड़ेगा।
4 साल बाद, 21 वर्ष का दसवीं या बारहवीं पास बेरोज़गार नौजवान, रोज़गार के लिए कहां जाएगा? अगर वो पुलिस में भर्ती के लिए जाता है तो उससे कहा जाएगा कि वहाँ तो पहले से ही बीए पास नौजवान हैं, इसलिए वो लाइन में सबसे पीछे खड़ा हो जाए व विभिन्न क्षेत्रों में पढ़ाई की वजह से उसके प्रमोशन पर असर पड़ेगा, इसके अलावा अगर सेना में ट्रेनिंग लिये हुए युवा को, नौकरी नहीं मिल पाई तो इसकी क्या गारंटी है कि 21 साल का बेरोज़गार नौजवान ग़लत रास्ते पर नहीं जाएगा व अपनी ट्रेनिंग का ग़लत इस्तेमाल करके समाज के लिए मुश्किलें पैदा नहीं करेंगा।
ऐसे कई सवाल है जो इस वक्त देश के युवाओं और उनके माता-पिता के मन में है, जिसका उत्तर व समाधान अभी तक उन्हें नहीं मिला है। जिसका सरकार को समय रहते समाधान निकालना चाहिए, इससे पहलें की देश के युवाओं का गुस्सा ओर आक्रमण हो जाए।
-निधि जैन
पिछले कुछ सालों से, सेना में भर्तियां रुकी हुई थीं जिसे लेकर देश के युवा, जिनके लिए सेना में भर्ती, जीवन का सबसे बड़ा सपना व नौकरी का महत्वपूर्ण ज़रिया होता है, वह सरकार से कई बार सवाल पूछ रहे थे कि जब भारतीय सेना में 97,000 पद खाली है तो, फिर भी क्यों सेना में भर्ती नहीं निकल रहीं है?
जिसके बाद, बीते दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने, घोषणा की थी कि, 'अग्निपथ' नामक योजना के तहत कम समय के लिए भारतीय सेना में युवाओं की नियुक्ति होगी। योजना के मुताबिक़, भारतीय सेना में चार सालों के लिए युवाओं की भर्तियां होंगी व नौकरी के बाद उन्हें सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा एवं उनका नाम होगा अग्निवीर तथा इस योजना में, सरकार ने दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में अग्निवीरों को पैकेज दिए जाने की बात भी कहीं है। जिसमें साढ़े 17 से 21 साल के बीच, 46,000 अग्निवीरों की भर्ती होंगी, जिनका वेतन 30-40 हज़ार रुपए प्रतिमाह के बीच होगा।
गौरतलब है कि एक ओर जहां राजनाथ सिंह ने अग्निपथ योजना को सेना के लिए आधुनिक, कायापलट कर देने वाला क़दम बताया है तो वहीं दूसरी तरफ अग्निपथ स्कीम का विरोध दिन-प्रतिदिन तेज हो रहा है, इसका विरोध सबसे ज्यादा बिहार और राजस्थान के युवा कर रहें है, उनका कहना है, जब हमनें परीक्षा देदी है और केवल भर्ती का इन्तजार कर रहें है तो आप कैसे सिर्फ इस योजना के तहत सेना में अब भर्ती करोंगे। साथ ही वह इस योजना के उस फैसले से भी नाराज है जिसमें कहा गया है कि केवल 25 प्रतिशत युवाओं को भारतीय सेना में आगे बढ़ने का मौक़ा मिलेगा जबकि बाकी को नौकरी छोड़नी होगी।
उल्लेखनीय है कि सरकार के इस फैसले से नौजवानों को सेना में सेवा करने का मौक़ा तो मिलेगा, ये योजना देश की सुरक्षा को मज़बूत करने में भी कारगर रहेंगी, युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना भी मज़बूत होंगी और युवाओं को भारतीय सेना में सेवा देने की आकांक्षा को भी पूरा किया जाएगा लेकिन सिर्फ 4 सालों तक, जिससे सैनिकों के हौसले पर भी असर पड़ सकता है।
लेकिन बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर सरकार ने केवल 4 सालों के लिए ही क्यूं ये भर्ती करने की योजना बनाई? क्या सरकार के इस क़दम का मक़सद, भारतीय सेना पर वेतन और पेंशन के बोझ को कम करना है। हालांकि इस बात पर तो लंबे समय से बहस चल ही रहीं थी कि बदलते वक़्त के साथ भारतीय सेना का नवीनीकरण कैसे किया जाए लेकिन इसे रक्षा सेना की क़ीमत पर नहीं किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि सरकार ने ऐसे में इस योजना की घोषणा की है जब देश में युवाओं को नौकरी का न मिलना एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भारत में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या है क्योंकि जिस दर पर, इस वक्त, लोगों को नौकरी की ज़रूरत है, रोज़गार उस तेज़ी से नहीं बढ़ रहा है। शहरी इलाक़ों में लंबे समय से युवाओं (15-29 साल) में बेरोज़गारी दर 20% से ऊपर है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस योजना ने युवाओं के मन में ये सवाल खड़ा कर दिया है कि अभी तो हमें रोजगार मिल जाएगा परन्तु 4 साल बाद क्या होंगा? और
वैसे भी भारतीय सेना में युवाओं का केवल चार वर्ष के लिए शामिल होना बहुत कम समय है और अगर ये अच्छा विकल्प है भी, क्योंकि सरकार जो भी कदम उठाती है विचार-विमर्श करके ही उसे लाती है, तो उस सन्दर्भ में इस योजना को उन्हें चरणों में लागू करना चाहिए था एवं युवाओं तक स्पष्ट रूप से इसकी जानकारी पहुंचानी चाहिए थी। इतने कम वक़्त में कोई युवा मिलिट्री ढांचे, स्वभाव से ख़ुद को कैसे जोड़ पाएगा। चार वर्ष में से छह महीने तो ट्रेनिंग में निकल जाएंगे, फिर वो व्यक्ति इन्फैंट्री, सिग्नल जैसे क्षेत्रों में जाएगा तो उसे विशेष ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी, जिसमें और वक़्त लगेगा। उपकरणों के उपयोग करने से पहले पूर्ण जानकारी हासिल करना भी जरूरी है, इतना वक़्त ट्रेनिंग आदि में गुज़र जाने के बाद व्यक्ति सेवा में कितना आगे बढ़ पाएगा। चार साल में वो क्या सीख पाएगा? कोई उसे हवाई जहाज़ का प्रयोग तो नहीं करने देगा तथा अगर उसको इन्फ़ैंट्री में उपकरणों की देखभाल नहीं करनी आती है तो वो वहां काम भी नहीं कर पाएंगे और अगर युद्ध में अनुभवी सैनिकों के साथ वह जाते भी हैं तो उसकी मौत पर क्या चार साल की ट्रेनिंग लिया हुआ व्यक्ति उसकी जगह लें पाएगा? क्या इन चीजों से उसकी सुरक्षा बलों की कुशलता पर असर नहीं पड़ेगा।
4 साल बाद, 21 वर्ष का दसवीं या बारहवीं पास बेरोज़गार नौजवान, रोज़गार के लिए कहां जाएगा? अगर वो पुलिस में भर्ती के लिए जाता है तो उससे कहा जाएगा कि वहाँ तो पहले से ही बीए पास नौजवान हैं, इसलिए वो लाइन में सबसे पीछे खड़ा हो जाए व विभिन्न क्षेत्रों में पढ़ाई की वजह से उसके प्रमोशन पर असर पड़ेगा, इसके अलावा अगर सेना में ट्रेनिंग लिये हुए युवा को, नौकरी नहीं मिल पाई तो इसकी क्या गारंटी है कि 21 साल का बेरोज़गार नौजवान ग़लत रास्ते पर नहीं जाएगा व अपनी ट्रेनिंग का ग़लत इस्तेमाल करके समाज के लिए मुश्किलें पैदा नहीं करेंगा।
ऐसे कई सवाल है जो इस वक्त देश के युवाओं और उनके माता-पिता के मन में है, जिसका उत्तर व समाधान अभी तक उन्हें नहीं मिला है। जिसका सरकार को समय रहते समाधान निकालना चाहिए, इससे पहलें की देश के युवाओं का गुस्सा ओर आक्रमण हो जाए।
-निधि जैन