एहतियातन के साथ मनाए त्यौहार

डूब रहा था बृज जब तो उठाया था गोवर्धन उनहोंने तो आज फिर से लोग बुला रहे हैं कृष्ण को इस युग में, भक्तों की यहीं पुकार कि एक बार फिर से उठालो पीर का पर्वत आप। दिवाली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर उत्तर भारत में मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा भारत में बढ़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें हिन्दू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते है।
तत्पश्चात ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान यानी पर्वत को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। बहरहाल यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है व उससे पूर्व ब्रज में भी इंद्र की पूजा की जाती थी लेकिन जब भगवान कृष्ण को यह तर्क देते हुए इंद्र से कोई लाभ नहीं प्राप्त होता जबकि गोवर्धन पर्वत गौधन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है तो इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।हालांकि, इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा के द्वारा डराने का प्रयास किया, परन्तु ब्रजवासी भगवान कृष्ण का आसरा पाकर अपने निर्णय पर अडिग रहे। उन्होंने अपना विचार नहीं बदला और इंद्र के बजाए गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी। एंव कृष्ण ने दाउ को संबोधित कर स्पष्ट कहा है कि गोवर्धन उनके गौ-धन की रक्षा करते है। वृक्ष देते है और ऐसे में हमे उनका पूजन-वंदन करना चाहिए। वह हमारी प्रकृति की रक्षा करते हैं तो इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ कर दी। ब्रज में स्थित द्वापरकालीन पहाड़ियों, पर्यावरण एवं यमुना की रक्षा के लिए संघषर्रत जयकृष्ण दास ने इस संबंध में कहा है कि कृष्ण पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षक थे। इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उनका यही उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें।
गौरतलब है कि त्यौहार चाहें कोई भी हो लोगों के मन में त्यौहार को लेकर उत्साह होना आवश्यक है और यह उत्साह लोगों के मन में कोरोना के दौर में भी दिखाई दे रहा हैं लेकिन लोगों को यह समझना होगा कि कोरोना अभी गया नहीं है बल्कि वायरस संक्रमित के आंकड़े रोजाना बढ़ते जा रहे हैं तो ऐसे में जरूरत है कि लोग एहतियात कदमों के साथ त्योहारों का मजा ले।
-निधि जैन

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