सातवां दरवाजा अभी भी बंद
केरल के तिरुवनंतपुरम मंदिर को देश का सबसे अमीर मंदिर माना जाता है। विष्णु भगवान का यह मंदिर देश के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में से एक है। व इस पद्मनाभ मंदिर के इतिहास की कई जड़ें छठी सदी तक जाती हैं।
1750 में त्रावणकोर के महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक यानी पद्मनाभ दास बताते हुए अपना जीवन और अपनी पूरी संपत्ति पद्मनाभ को समर्पित कर दी। जिसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। एंव मंदिर को वह स्वरूप मिला, जो कमोबेश आज भी है। 1947, तक त्रावणकोर के राजाओं ने यहां शासन किया और उन्होंने ही इस मंदिर का काम-काज व मैनेजमेंट संभाला। जिसके बाद से अब तक वह ट्रस्ट ही इस मंदिर के सारा काम काज करते हैं। एंव इस ट्रस्ट का चेयरपर्सन शाही परिवार का ही कोई व्यक्ति रहता था। लेकिन मंदिर के रख-रखाव और मैनेजमेंट के ज़िम्मे के ऊपर कई सवाल उठने लगे कि इस मंदिर को कौन संभालेगा? राज्य सरकार या त्रावणकोर रॉयल फैमिली? क्योंकि त्रावणकोर रॉयल फैमिली के पुरखों ने ही कभी यह मंदिर बनवाया था। बहरहाल, 2011 में केरल हाईकोर्ट ने मंदिर का फैसला राज्य सरकार के पक्ष में किया था। जिसके बाद त्रावणकोर रॉयल फैमिली ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। और अब नौ साल बाद कोर्ट ने 13 जुलाई को जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच में यह फैसला लिया है, कि इस मंदिर का कार्यभार का जिम्मा त्रावणकोर फैमिली को सौंपा जाएगा। व कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर का निर्माण कराने वाले त्रावणकोर के राजा की मृत्यु उनके परिवार को इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। एंव कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि मंदिर से जुड़े मामलों को संभालने के लिए एक समिति भी बनाई जाएगी।जिसमे तिरुवनंतपुरम के जिला जज इस समिति के चेयरपर्सन होंगे। और समिति के सभी सदस्य हिंदू होंने अनिवार्य होंगे। गौरतलब है कि जब मंदिर के मैनजमेंट का अधिकारी तय करने के लिए सारी कानूनी प्रक्रियाएं हो रही थीं। तो जब उसी बीच 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मंदिर के सभी तहखानों के दरवाजे खोले जाएगे। ताकि मंदिर की कुल संपत्ति का अंदाजा लगाया जा सके। जिसमें से तहखाने के छह दरवाजे तो खोले गए। लेकिन सातवा दरवाजा नहीं खोला गया। छेह दरवाजों को खोलने के बाद तहखानों के अंदर से करीब एक लाख करोड़ रुपए के हीरे-ज़ेवरात मिले, सोने के पिलर्स मिले, सोने के हाथी, देवताओं की सोने की मूर्तियां, 18 फुट लंबे हीरे के नेकलेस, 66 पाउंड के सॉलिड नारियल के खोल भी मिले। परंतु अब बारी थी, तहखाने का सातवां दरवाजा खोलने की। क्योंकि एक वही दरवाजा अभी तक नहीं खोला गया था। जिसके बारे में त्रावणकोर परिवार के मार्तंड वर्मा ने कहा कि अगर यह दरवाजा खुला, तो प्रलय आ जाएगी। व इस रहस्य को रहस्य ही रहने दिया जाए तो ही अच्छा होगा। क्योकि यह दरवाजा शापित माना जाता है। वैसे 1931 में दरवाजा खोलने की कोशिश की गई थी। परन्तु तब हज़ारों नागों ने तहखाने को घेर लिया था और लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा था। व 1908 में भी ऐसी ही एक असफल कोशिश हो चुकी है। लेकिन लोगों को कहना है कि इस तहखाने के पीछे विशाल खजाना है। परंतु तहखाने के दरवाजे पर कोई कुंडी नहीं है, कोई ताला नहीं। अंदर क्या-कैसा खजाना है, किसी को पता नहीं। लेकिन यह जरूर पता है कि दरवाजे की रक्षा खुद दो सांप करते है। सांप, जिनकी आकृतियां दरवाजे पर बनी हुई हैं व जिनकी इजाज़त के बिना इस खजाने का यह दरवाजा खुल नहीं सकता। एंव यह माना जाता है कि इस दरवाजे को कोई सिद्ध पुरुष या कोई योगी ही खोल सकता है। गरुड़ मंत्र के शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण के द्वारा ही पर अगर उच्चारण सही नहीं हुआ, तो मृत्यु भी हो सकती है।
इन सब बातों को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर से जुड़ी आस्थाओं का सम्मान करते हुए सातवां दरवाजे खोलने पर पाबंदी ही रखी है यानी कई सौ साल से बंद यह दरवाजा बंद ही रहेगा। वैसे अनुमान लगाया था कि, अगर इस दरवाजे के पीछे का जो खजाना है, वो बाहर आया तो मंदिर की कुल संपत्ति एक ट्रिलियन डॉलर से भी ऊपर होगी यानी करीब 75 लाख करोड़ रुपए। हालांकि, अभी मंदिर के पास दो लाख करोड़ रुपए से भी ज़्यादा की संपत्ति है। जिसके बाद अनुमान के तौर पर यह मंदिर विश्व के सबसे अमीर मंदिर माना जाता है। और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस संपत्ति पर अधिकार त्रावणकोर शाही परिवार का ही है। परंतु सातवां दरवाजा अभी भी बंद है। नागों का रहस्य अभी भी कायम है। साथ ही कायम है, मंदिर पर लोगों की अटूट आस्था, जो कि इस मंदिर को वैष्णवों के सबसे बड़े आस्था स्थलों में से एक बनाती है।
-निधि जैन