आंदोलन खत्म होगा या नहीं?
किसान आंदोलन के चलते हर वर्ग के मनुष्यों को कई परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है व बॉड़र बंद होने के कारण लोगों के कामकाज पर भी काफी असर पढ़ा है। एक बॉड़र बंद होने की वजह से लगभग 10 हजार से ज्यादा उद्योग धंधे बुरी तरह से प्रभावित हैं। इसीलिए बहादुरगढ़ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के लोग खुद ही किसानों से बात करके सड़क का एक हिस्सा खुलवा रहे हैं आलम तो ये है कि इस कारणवश हजारों फैक्ट्री मालिक सरकार और प्रशासन के रुख से नाराज़ हैं।
दिल्ली हरियाणा बॉर्डर के बहादुरगढ़ में जूते और चप्पल बनाने की एक हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां है, जिन पर पहले कोरोना और अब दिल्ली हरियाणा के बंद बॉर्डर से उनकै व्यवसाय पर असर पड़ा है। कच्चे माल की सप्लाई बाधित होने के चलते फैक्ट्री में 50 फीसदी काम ही हो रहा है। जिससे फैक्ट्री मालिकों के साथ-साथ कामगारों की आमदनी पर भी असर पढ़ रहा है। किसान आंदोलन के चलते बहादुरगढ़, कुंडली और मानेसर की फैक्ट्रियां पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। परेशान लोगों का कहना है कि सरकार को एक उचित समय के बाद किसानों को वापस भेजना चाहिए व जब 26 जनवरी को किसान दिल्ली में चले ही गए थे, तो उनको वहां भी तो रोक सकते थे, खामखां क्यों बॉर्डर बंद किया है, ये बात समझ से परे हैं। हालांकि बड़ी तादाद में जब से किसान धरने पर बैठे है तब से एक बार भी कभी किसी फैक्ट्री के ट्रक या टेंपो को नुकसान नहीं पहुंचा है, परन्तु हरियाणा से लेकर दिल्ली के मुंडका तक की फैक्ट्रियों को करोड़ों के नुकसान के बावजूद सरकार कोई हल निकालने को तैयार नहीं है।किसान आंदोलन को तीन महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन सरकार न किसान से बात कर रही है और न ही 25 हजार करोड़ का सालाना व्यापार करने वाले फैक्ट्री मालिकों की चिंता को दूर करने की कोशिश कर रही है, लिहाजा किसान और व्यापारी दोनों परेशान हैं।
-निधि जैन