पहली देसी वैक्सीन

 विश्व में पहली बार किसी देसी वैक्सीन को सरकार द्वारा मंजूरी मिली है। कोविड-19 वैश्विक महामारी को हराने के लिए पूरी दुनिया के मेडिकल साइंस के लोग कोरोना ड्रग और वैक्सीन को बनाने में जुटे हुए हैं। वैसे तो भारत भी कोरोना के शोध में आगे ही चल रहा है। परन्तु इस संकट की घड़ी के बीच भारतीय साइंटिस्ट ने एक खतरनाक बीमारी निमोनिया की वैक्सीन बना ली है।

देश में हर साल लाखों बच्चे जिनकी उम्र पांच साल से कम होती है वो इस बीमारी की चपेट में आकर अपनी जान गवां देते है। ड़ीसीजीआई यानी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने बीते दिन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा विकसित न्यूमोकोकल पॉलीसैकराइड कंजुगेट वैक्सीन को मंजूरी भी दे दी है। जिसके बाद अब पुणे स्थित कंपनी भारत में भी इस वैक्सीन के उपयोग का निर्माण कर सकती है। इस टीके के प्रयोग से शिशुओं में स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया के कारण होने वाले आक्रामक रोग और निमोनिया के खिलाफ सक्रिय टीकाकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। व इस स्वदेशी न्यूमोकोकल वैक्सीन के कारण बाल मृत्यु दर कम करने के हमारे प्रयास में यह गेम-चेंजर साबित होगी। निमोनिया एक ऐसी खतरनाक बीमारी होती है जो कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को तुरंत अपनी चपेट में लेती है। जिसके कारण बच्चे की सांस रूकने से उनकी मौत तक हो जाती है। एंव भारत में हर साल इस बीमारी से लगभग 1,27,000 बच्चों की मौत निमोनिया जैसी खतरनाक बीमारी से हो जाती है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार यह वैक्सीन निमोनिया के क्षेत्र में पहली स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन होगी। इससे पहले भी इस तरह के टीके की मांग काफी हद तक पूरी हुई थी, लेकिन विदेशी कंपनियों ने ही ऐसी वैक्सीन बनाई थी। परन्तु देश में लाइसेंस प्राप्त कंपनी द्वारा ऐसा पहली बार हुआ है।
गौरतलब है कि, भारत के शोधकर्ता भले ही कोरोना वायरस की वैक्सीन अभी तक नहीं नहीं बना पाए है, परन्तु अभी जिस समय विश्व कोविड़-19 के प्रकोप से जूझ रहा है ऐसे वक्त में निमोनिया जैसी खतरनाक बीमारी की काट मिलना एक शुभ खबर है।
-निधि जैन

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