पत्रकार खुद खबर बन गया
मुंबई में क्या पूर्ण रूप से जंगलराज चल रहा है, नंगे पैर, एक थाने से दूसरे थाने, एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल दौड़ा रहे हैं, सत्ता के नशे ने क़ानून को फ़ुटबॉल बना दिया है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ताक पर रख दिया गया है, अत्याचार और जुर्म तो रावण का भी ज़्यादा दिन नहीं चल पाया था तो यह तो कलयुग हैं।
बहरहाल अर्नब गोस्वामी की पत्रकारिता के कई पहलू ऐसे बेशक़ हैं जिनसे जरूरी नहीं कि हर कोई सहमत हों लेकिन बीते दिन जो मुंबई पुलिस की कार्रवाई बदले की भावना में बदल गई थी। वह अवश्य ही गलत हैं। पुलिस को यह ध्यान रखना ही होगा कि वह किसी राजनीतिक दल या नेता की निजी सेना की तरह काम नहीं कर सकती। इस वक्त पुलिस कार्रवाई बेशक़ ही निंदनीय और भर्त्सनीय है। बीते दिन रिपब्लिक के एडिटर अर्नब गोस्वामी को खुदकुशी के लिए उकसाने के केस में गिरफ्तार किया गया। जो मामला दो साल पुराना है। अर्नब के घर में अचानक घुसकर रायगढ़ पुलिस ने जो कार्रवाई की वह अवश्य ही सवाल खडे करती है। माना पत्रकार कानून से ऊपर नहीं होता लेकिन मीडिया प्रोफेशनल के साथ ऐसा व्यवहार भी उचित भी नहीं हैं। सच में हद है।जिस तरह से गोस्वामि को उठाकर ले जा रहे थे। लग रहा था कि अर्नब कोई आतंकवादी हैं। हकीकत में लानत है मुम्बई पुलिस पर इस केस के लिए। अर्नब गोस्वामी के हाथ पर मारपीट के चोट के निशान हैं। हालांकि सत्ता जिनके हाथों में ऐसे घाव देती है उनकी जुबान और भी ज्यादा पैनी और हौसला हिमालय सा हो जाता है परन्तु शेर जल्दी ही बाहर आएगा और, और भी मजबूती से दहाड़ेगा तथा न य। जिनपिंग का चीन है, न ही यह इमरान का पाकिस्तान।
तो प्रशन यह उठता है कि रिपब्लिक के एड़िटर के साथ महाराष्ट्र में ऐसा व्यवहार क्यों किया गया? व सवाल यह भी उठता है कि आखिर दो साल बाद पुलिस को ऐसा कौन सा सबूत मिल गया कि उनको अर्नव को उनके घर से ही उठना पड़ा और वैसे भी अर्णब की गिरफ्तारी से जुड़ा मामला साल 2018 का है व पुलिस के मुताबिक, रिपब्लिक टीवी का स्टूडियो तैयार करने वाली कंपनी कॉन्कॉर्ड डिजाइन प्राइवेट लिमिटेड के एमडी अन्वय नाइक और उनकी मां ने 2018 में आत्महत्या कर ली थी लेकिन आत्महत्या करने से पहले उन्होंने एक पत्र लिखा था। जिस सुइसाइड नोट में उन्होंने कहा था कि रिपब्लिक टीवी के 83 लाख रुपये समेत दो अन्य कंपनियों आईकास्टएक्स व स्काइमीडिया और स्मार्टवर्क्स के पास कुल 5.40 करोड़ रुपया बकाया होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है और अब उनके पास आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं बचा है।
और इसलिए उनहोंने आत्महत्या करने का फैसला किया। परन्तु वरिष्ठ पत्रकार की गिरफ्तारी कांग्रेस पार्टी के द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर हकीकत में प्रहार है। देश में इमरजेंसी थोपने व सच्चाई का सामना करने से हमेशा मुंह छुपाने वाली कांग्रेस इस समय पुन प्रजातंत्र का गला घोंटने का प्रयास कर रही है लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, परन्तु पुलिस की इस बदले की कार्रवाई भी उचित नहीं है। मुंबई पुलिस ने जो किया है वह राज्य की शक्ति का दुरुपयोग है। बह हम तो उम्मीद ही है कि भविष्य में पुलिस या कोई भी एजेंसी अपनी शक्ति का गलत उपयोग नहीं करेगी। कांग्रेस समर्थित महाराष्ट्र सरकार का यह कृत्य लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया के स्वतंत्र रूप से कार्य करने से रोकने का कुत्सित प्रयास है। पर अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी ने एक बड़ा काम कर दिया है कि इस देश की युवा पीढ़ी इमरजेंसी और इमरजेंसी लगाने वालों को लगभग भूल चुकी थी। इमरजेंसी के जिस जिन्न को वह पिछले 45 साल से बोतल में कैद करने की जुगत में थे, उस जिन्न ने आज बोतल तोड़ दी। आज चौराहे-चौराहे पर इमरजेंसी की चर्चा हो रही हैं।
गौरतलब है कि अगर पुराने मुकदमों को खोल कर गिरफ्तारियां शुरू भी की जा रही है तो फिर मुंबई पुलिस के ज्यादातर अधिकारी हत्या, यौन शोषण फेक एनकाउंटर, करप्शन, हफ्ता वसूली, मारपीट, अवैध सम्पत्ति के मामले में सबसे पहले अंदर होंगे। एक पत्रकार से इतना भय कैसे किसी को हो सकता हैं।
जो जनता सत्ता पर बैठाती है, वही अब जवाब देगी, एक अर्नव की आवाज़ दबा नेगी तो हर घर से गोस्वामि आवाज़ उठाएगा, सच की विजय होगी। पूरा भारत अर्नव गोस्वामि के साथ है।
-निधि जैन