हिंसा हिंसा हिंसा

 नफरत के खिलाफ रिपोर्ट करना यकीनन ही नफरत फैलाना नहीं होता परन्तु शायद हमारे देश में बहुत सारे लोगों को इस सच से परेशानी होती है और यह लोग चाहते हैं कि इन्हें खबर का वह संस्करण दिखाया जाए जो उन लोगों को सूट करता है लेकिन इन कुछ मुट्ठी भर लोगों के अनुसार, जेहाद पर बात करना तो नफरत फैलाना ही हैं क्योंकि इनके मुताबिक कट्टर इस्लाम का विरोध करना सभी मुसलमानों का विरोध करने जैसा है व किसी धर्म में सुधार की बात करना असहनशीलता है।

गौरतलब है कि हाल ही में बांग्लादेश से आई कुछ तस्वीरें उन मुट्ठी भर लोगों को देखनी चाहिए, ताकि वह उन तस्वीरों को देखकर समझ जाए कि असली असहनशीलता और असली कट्टरपंथ हकीकत में किसे कहते हैं। बहरहाल सभी मुस्लिम देशों की तरह इन दिनों बांग्लादेश में भी फ्रांस के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं परन्तु विरोध करने के लिए बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी सिर्फ फ्रांस के झंडे ही नहीं जला रहे, बल्कि वहां रहने वाले हिंदुओं के घरों को भी जलाया जा रहा है। जो अवश्य ही निंदनीय हैं।
बांग्लादेश के कोमिला जिले में कट्टरपंथी भीड़ ने हिंदुओं के दस घरों में तोड़ फोड़ की और इन घरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया एंव इस आगजनी में 500 लोग शामिल थे और वह लोग फेसबुक पर फैली एक अफवाह के बाद भड़के थे। हैरानी की बात तो यह है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के घर सिर्फ इसलिए जलाए गए, क्योंकि किसी ने अफवाह फैला दी कि इन घरों में रहने वाले हिंदू, फ्रांस का समर्थन कर रहे हैं। बिना सोचे समझे लोगों ने हिंदुओं के बसे-बसाय घर जला दिये। जो बेशक़ ही शर्मनाक हैं। वैसे कहने को तो बांग्लादेश भारत और फ्रांस की तरह एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है लेकिन वहां रहने वाली अल्पसंख्यक आबादी बहुसंख्यक आबादी की विचारधारा का विरोध नहीं कर सकती और अगर कोई हिंदू अल्पसंख्यक बांग्लादेश की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखता तो उसका क्या हश्र होता है यह इस घटना से स्पष्ट हो गया है। बीते दिनों एक बार फिर बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। जिसमें बांग्लादेश की राजधानी ढाका की सड़कें हजारों प्रदर्शनकारियों से भरी हुई थीं।
यह विरोध प्रदर्शन हिफाज़त ए इस्लाम नाम के संगठन ने आयोजित किया था और यह संगठन शिक्षकों और छात्रों का समूह है जिसका संबंध बांग्लादेश के हजारों इस्लामिक स्कूलों से है तो इन लोगों ने न सिर्फ विरोध प्रदर्शन किया, बल्कि ढाका में फ्रांस के दूतावास पर भी कब्जा करने की कोशिश की। पाकिस्तान से तो ऐसी तस्वीर सामने आई जिसे देखकर यह कोई भी समझ जाएगा कि असली नफरत किसे कहते हैं। पाकिस्तान के एक स्कूल की तस्वीर थी जिसमें जहां एक टीचर ने छात्रों को यह सिखाने की कोशिश की कि इस्लाम के नाम पर किसी का गला काट देना जायज है। जिसके लिए टीचर ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के एक पुतले का इस्तेमाल किया और छात्रों को इस पुतले का सिर कलम करके दिखाया। जिससे यह समझ सकते हैं कि जिन देशों के स्कूलों में धर्म के नाम पर गला काटने की ट्रेनिंग दी जा रही हो तो फिर उन देशों में अल्पसंख्यकों का जीवन कितना मुश्किल होता होगा।विरोध के नाम पर ऐसी डरावनी तस्वीरें दुनिया के दूसरे देशों से भी सामने आ रही हैं। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भी प्रर्दशनकारियों ने मैक्रों के चेहरे वाला मास्क लगाए एक व्यक्ति का गला काटने की एक्टिंग की और इनका मकसद भी यही साबित करना था कि इस्लाम के नाम पर यह सब करना जायज है।
कई ऐसे लोग जो धर्म और मोहब्बत के नाम पर फ्रांस का विरोध कर रह हैं और कह रहे हैं कि हम तो शांति फैला रहे हैं। ये कितना बड़ा विरोधाभास है। 31 अक्टूबर को भारत के 95 पूर्व बड़े सरकारी अफसरों ने भारत की कंपनियों और कॉर्पोरेट्स को चिट्ठी लिखकर कहा था कि कंपनियां उन न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देना बंद कर दें जो नफरत फैलाते हैं। हकीकत में नफरत फैलाने वालों का बहिष्कार होना चाहिए लेकिन सवाल यह है क्या देश के 95 लोग यह तय कर सकते हैं कि क्या नफरत को रिपोर्ट करना भी नफरत फैलाना है? इस्लाम में फैले कट्टरपंथ का विरोध करना, मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाना लगता है और अगर यह सारे अधिकारी आज भी अपने पदों पर होते तो क्या यह लोग तभी भी ऐसे ही एकतरफा फैसले लेते?
अगर लव जेहाद के नाम पर निकिता तोमर के मर्डर का केस इनके पास आता तो क्या यह लोग एजेंडे को साइड में रखकर अपना फर्ज निभा पाते? राहुल राजपूत की हत्या के मामले में इनकी कार्रवाई कैसी होती और अगर शाहीन बाग का मामला इनके संज्ञान में लाया जाता, तो यह लोग क्या करते? यह सवाल बेशक़ उठने लाजिमी है। जब शाहीन बाग में संविधान की प्रतियां हाथ में लेकर संविधान की धज्जियां उड़ाई जाती है तो इन्हें संविधान की याद नहीं आती लेकिन जब नफरत को रिपोर्ट किया जाता है और उस रिपोर्ट के केंद्र में किसी धर्म विशेष के लोग होते हैं तो इन्हें संविधान की याद आ जाती है। जब देश भर के मुसलमान संविधान में दी गई आजादी के नाम पर देश भर की सड़कों को जाम कर देते हैं और सरकार के फैसले के साथ नहीं होते।
-निधि जैन

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वर्ष 2020 की यादें

कौन भरेगा 814 करोड़ का नुकसान?

अब कावासाकी से भी लड़ना है