संकट में मनुष्य जीवन
बढ़ते प्रदूषण ने आज देश के लोगों के जीवन का गणित पूरी तरह से बिगाड़ कर रख दिया है। भारत की सबसे बड़ी रिसर्च संस्था आइसीएमआर ने हाल ही में प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों के आंकड़े जारी किए हैं। जिन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो रहा है कि बढ़ते वायु प्रदूषण से आने वाले समय में लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पिछले वर्ष यानी 2019 में प्रदूषण के कारण 16 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। जिनमें से 9 लाख 80 हज़ार लोगों को हवा में पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी थी जबकि 6 लाख 10 हज़ार लोगों की मौत घरेलू प्रदूषण यानी घर के अंदर मौजूद प्रदूषण की वजह से हुई थी। हालांकि हमारे देश में प्रदूषण से रोजाना 4 हज़ार 383 लोगों की मौत होती है, वहीं हर घंटे होने वाली मौतों की संख्या 282 है यानी देश में होने वाली कुल मौतों में से 18 प्रतिशत के लिए प्रदूषण ही जिम्मेदार है। बहरहाल पिछले 29 वर्षों के तुलनात्मक अध्ययन में यह पता चला है कि भारत में घरेलू प्रदूषण में 64% की कमी आई है, लेकिन आउटड़ोर वायु प्रदूषण 115 प्रतिशत तक बढ़ गया है। जिसका मतलब है कि प्रदूषण से जनता अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है, परन्तु घर से बाहर निकलना और भी ज्यादा खतरनाक है तथा बढ़ते वायु प्रदूषण से भारत को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है, देश को पिछले वर्ष प्रदूषण के कारण लगभग 2 लाख 60 हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ था। जो नुकसान भारत की कुल जीड़ीपी के 1.4 प्रतिशत के बराबर है व कुल मिलाकर यह भी संभव है कि अब तक अगर किसी की मृत्यु होने पर लोग कहते होगे कि इस व्यक्ति की मौत दिल के दौरे से हुई है, कैंसर से हुई है या अन्य किसी बीमारी से हुई है जो असल में इन बीमारियों के कारण नहीं वायु प्रदूषण से भी हो सकती है।
भारत में पीएम 2.5 का स्तर 50 से ऊपर होने को खतरनाक माना जाता है, वहीं हर देश में अपने मुताबिक पीएम का स्तर निर्धारित किया जाता हैं। भारत में पिछले वर्ष प्रदूषण की वजह से 16 लाख लोगों की मौत हुई जबकि सड़क दुर्घटनाओं में हर साल 2 लाख लोगों की मौत होती है और इस वर्ष कोरोना वायरस की वजह से अब तक 1 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं एंव प्रदूषण आज के भारत की सबसे बड़ी समस्या है। जिसे हमें हल्के में बिल्कुल भी नहीं लेना चाहिए। भारत में पिछले वर्ष ही दूषित हवा को देखते हुए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी। जिसका लक्ष्य था कि 2024 तक पीएम 2.5 यानी हवा के ज़हरीले कणों में कमी आ जाए लेकिन हर साल प्रदूषण का स्तर घटने की जगह बढ़ रहा है, जो बेशक़ भयावह हैं।
प्रदूषण किस वजह से बढ़ रहा है यह किसी से छुपा नहीं है तेज़ी से कटते पेड़, बढ़ती गाड़ियां, डीजल जेनरेटर, निर्माण कार्य यानी तरक्की करने के नाम पर किए जा रहे सभी काम बदले में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। धीरे-धीरे करके हम प्रकृति से मिले हवा-पानी को ज़हरीले बना रहे है, खुद की मौत का सामान इकट्ठा कर रहे है। प्राकृतिक हवा को हम एयर कंडीशनर और हीटर से बदल रहे हैं, ताजे भोजन को फ्रिज और माइक्रोवेव से अपने हिसाब से ठंडा या गर्म कर लेते हैं व प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने की जगह इंसान ने प्रकृति को अपने हिसाब से ढालने की कोशिशें की हैं लेकिन प्रकृति के विरुद्ध जाना संभव ही नहीं है और इसीलिए आज हमारे आस पास की हर चीज़ ज़हरीली हो गई हैं। चाहे वह हवा हो, पानी हो या मिट्टी अब वही ज़हर हमें हर सांस के साथ वापस मिल रहा है। अब स्थिति यह है कि हम सांस लेंगे तो भी मर जाएंगे और नहीं लेंगे तब तो मरना निश्चित ही है।गौरतलब है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीने के कुछ व्यावहारिक तरीके हैं जो प्रदूषण भी कम कर सकते हैं परन्तु उनके लिए हमें थोड़े आराम का त्याग करना होगा जिसके बदले में हमें बेहतर पर्यावरण मिल सकता है। और अगर हम दूषित प्रदूषण को गंभीरता से नहीं लेगे तो अवश्य ही हम बढ़ते प्रदूषण के कोहराम में घुलते चले जाएंगे।
-निधि जैन