ऑनलाइन शिक्षण में परिवर्तन
वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रकोप के कारण 22 मार्च से विश्व भर में लॉकडाउन लागू है। जिसमें धीरे-धीरे करके रियायतें दी जा रही हैं लेकिन अभी तक शिक्षण संस्थाओं को खोलने की अनुमति नहीं मिली है।
जिसके चलते शिक्षण संस्थानों ने ऑनलाइन क्लासेस की योजना निकाली है। जिसमें छात्रों को गूगल मीट, जूम इत्यादि का उपयोग करके छात्रों को अध्ययन कराने का प्रयास किया जा रहा है। परंतु ऑनलाइन क्लासेज के दौरान बच्चों का पूरा ध्यान उनके फोन, लैपटॉप कंप्यूटर इत्यादि में होता है। जिसकी वजह से इसका असर उनके शारीरिक, मानसिक, स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों पर पड़ रहा है। आंखों में जलन, गर्दन में दर्द, पीठ में दर्द जैसी अन्य कई रोगों का शिकार छोटे बच्चे हो रहे हैं। जिसको देखते हुए अब ऑनलाइन क्लासेज के लिए एचआरडी मिनिस्ट्री ने नई गाइडलाइंस जारी की है। जिसके मुताबिक प्री-प्राइमरी छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं रोजाना 30 मिनट से अधिक नहीं हो सकती। व पहली से आठवीं तक के लिए 30 से 45 मिनट तक के सिर्फ दो ही ऑनलाइन सेशन होंगे। एवं इसी तरह कक्षा नौवीं से बारहवीं के लिए 30 से 45 मिनट तक के सिर्फ चार सेशन ही हो सकेंगे। स्क्रीन टाइम कम करने का मकसद सिर्फ यही है, कि बच्चों पर इस का कोई भी अनुचित प्रभाव नहीं पढ़े।साथ ही साइबर सुरक्षा को लेकर भी एहतियातन बरतने पर बल दिया गया है। क्योंकि इस कोरोना वायरस से लड़ाई कुछ वक्त की नहीं है यह लड़ाई बहुत लंबी चलेगी। तथा देश के विभिन्न स्कूलों में अभी भी ऑनलाइन क्लासेज ही जारी रहेगी। और वैसे भी यह कहना गलत नहीं होगा कि, इस संकट की घड़ी में व तमाम अटकलो के बीच ई-लर्निंग यानी ऑनलाइन पढ़ाई एक आवश्यक टूल बनकर उभरा है। लेकिन उन बच्चों के बारे में भी तो सोचना चाहिए जो इस ऑनलाइन पढ़ाई के कारण त्रस्त हो चुके हैं। व अन्य कई बीमारियों के शिकार हो रहे। तो ऐसे में ई- लर्निंग के बजाय विद्यालयों को कोई ओर विकल्प तलाश ना चाहिए ताकि देश का हर विद्यार्थी इस संकट की घड़ी में शिक्षा प्राप्त कर सके। क्योंकि शिक्षण पर हर एक विद्यार्थी का हक है।
-निधि जैन