कभी बिना मांगे देकर देखो

बनावटी दुनिया में इंसानियत का तमाशा देखा, अगर कोई इंसानियत से किसी की सहायता करना चाहता है तो उस पर ही लांछन लगते वे देखा। कसूर क्या है उन लोगों का जो किसी की सहायता करना चाहते हैं। गलती पर उंगली तो बड़ी तेजी से उठा देते हैं परंतु योगदान के लिए क्यों नहीं उठाते इतनी ही शीघ्रता से हाथ।
इस समय पूरे विश्व में प्रवासी मजदूर, किसान व गरीब लोगों को सहायता की जरूरत है जिसके लिए कई लोगों ने अपनी-अपनी आय के अनुसार लोगों की सहाय की है।
महामारी और लॉकडाउन के कारण आम लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों को अपने घर के लिए पलायन करना पड़ा था जिसकी वजह से उनसे उनकी कमाई का साधन भी छिन गया है। लेकिन केंद्र सरकारों ने प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार का इंतजाम करा है परंतु अब वह लोग फिर से वापस शहर लौटना चाहते है। हालांकि लॉकड़ाउन के दौरान सरकार ने कई बातों पर ध्यान भी दिया हैं। जिसमें गरीब से लेकर उद्योगों लोग शामिल हैं। और सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की है, कि कोई भी इस संकट की घड़ी में भूखा ना सोए और अर्थव्यवस्था भी न लड़खड़ाए। गौरतलब है कि, कोरोना संकट के दौरान जहां सारी सार्वजनिक गतिविधियां ठप्प पड़ी थी, उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ न सिर्फ जरूरतमंदों की मदद के लिए लगातार सक्रिय है, बल्कि उसके स्वयंसेवकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। यानी इस मुश्किल घड़ी में भी कई ऐसे लोग हैं जो दूसरो की सहायता करने के लिए आगे आ रहे हैं। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक कोरोना संकट के दौरान यानी पिछले पांच महीने में स्वयंसेवकों की संख्या में बीस से पच्चीस फीसदी तक बढ़ोतरी आई है। और यही नहीं, गुरुदक्षिणा के रूप में मिलने वाली राशि में भी इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ोतरी देखी जा रही है।
संघ के वरिष्ठ अधिकारीयों का कहना है कि, 1925 में स्थापना के बाद यह पहला अवसर आया है, जब आरएसएस ने पूरे देश में एक साथ कार्यक्रम चलाय है। वैसे तो इससे पहले भूकंप, चक्रवात, सुनामी या अन्य प्राकृतिक आपदा के दौरान ही एक या दो जगहों पर राहत के काम में संघ के स्वयंसेवक जुटते थे व तब ही पूरे देश से स्वयंसेवक उनकी मदद के लिए सामने आते थे। लेकिन यह पहली बार हुआ है जब स्वयंसेवकों को बिना किसी बाहरी सहायता के स्थानीय स्तर पर संसाधन जुटाकर लोगों की मदद के लिए सामने आना पड़ा। बहरहाल, कोरोना संक्रमण के डर से जहां लोग घरों में बंद थे, वहीं स्वयंसेवक अपने-अपने इलाके में जरूरतमंदों की पहचान कर उन तक हरसंभव सहायता पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। एंव इससे प्रभावित होकर ही बड़ी संख्या में लोग संघ से जुड़ते चले गए है। जिससे ही नए स्वयंसेवकों की संख्या में बारी उछाल आया है। तथा बात सिर्फ नए स्वयंसेवको के जुड़ने और संघ सामाजिक कामों के बढ़ने तक ही सीमित नहीं है बल्कि वायरस के कारण जहां लोगों की आमदनी सिमटी जा रही है, वहीं स्वयंसेवक गुरुदक्षिणा में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। जो कि बहुत ही गौरवान्वित बात है। व वैसे तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए गुरुदक्षिणा के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों की संख्या सीमित रखने और सबके लिए अलग-अलग समय निर्धारित भी किये गये है ताकि नियमों का भी उल्लंघन नहीं हो और ज़रूरतमंदों की सहायता भी हो जाए। एंव वैसे तो संघ को इस बार आशंका थी कि वैश्विक महामारी के कारण संघ में इस बार कम गुरुदक्षिणा आएगी जिसके लिए संघ को अगले साल कम पैसे में खर्च चलाना होगा, लेकिन अब तो गुरुदक्षिणा में पिछले साल की तुलना से कहीं ज्यादा रकम आ रही है।
जिससे संघ के अधिकारी अब ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहायता करने में जुट गए हैं और उनकी कोशिश है कि, वह हर जरुरतमंद तक सहाय पहुंचाने में सक्षम रहें। गौरतलब है कि, जब किसी पर मुसीबत आती है तो दुनिया चर्चे करती है, मतलबी लोग मुंह फेर लेते हैं, बेगाने अफसोस करते हैं व अपने झूठी तसल्ली देते हैं किंतु सहाय का हाथ तो सच्चे लोग ही केवल उठाते हैं। तो ऐसे में लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सराहना करनी चाहिए व लोगों को इस बारें में जागरूक करना चाहिए ताकि अन्य लोग भी इस मुहिम का हिस्सा बन सकें। वैसे माना किसी इंसान की मदद करने पर दुनिया तो नहीं बदलने वाली परंतु जिस इंसान की आप मदद कर रहे हैं उसकी तो दुनिया जरूर बदल सकती है। व अगर किसी की सहायता करने का मौका मिले तो जरूर कीजिए क्योंकि आज भी कई हजारों सड़कों पर खड़े हैं दर्द लिए, अपने मन में ना जाने कितने ख्वाबों को समेटे।
-निधि जैन

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