चलिए धर्म के साथ मानवता को बचाते हैं
भूख से बड़ा मजहब और रोटी से बड़ा ईश्वर अगर इस विश्व में कोई हो तो मुझे भी बता देना मुझे भी अपना धर्म बदलवाना है। सच में इस संसार में धर्म को अमर करने के लिए इंसानियत का विनाश हो रहा है। इंसान सिर्फ मंदिर, मस्जिद, चर्च के फसाद में ही फंसकर रह गया है।
क्योंकि मेरे हिसाब से तो सभी मजहब हमें सिर्फ मोहब्बत का ही पैगाम देते हैं। धर्म के नाम पर हाथों में तलवार उठाना, दूसरों पर अत्याचार करना, धर्म परिवर्तन करवाना शायद यह तो सिर्फ सियासत ही है। क्योंकि जो मजहब जानते हैं, वह तो सिर्फ दूसरों पर ही जान दे सकते हैं। किसी की जान ले नहीं सकते। लेकिन इन सब के बावजूद भी हमारे देश में कई ऐसे शहर हैं जहां मजहब के नाम पर, धर्म के नाम पर लोगों के साथ दुर्व्यवहार होता है। उन्हें सताया जाता है। जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया जाता है।वैसे तो भारत में हर मजहब के लोग एकता, शांति, भाईचारे के साथ रहते हैं। परंतु कहते हैं ना कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है ठीक इसी तरह कुछ मुट्ठी भर लोग इस समाज में अशांति उत्पन्न कर रहे हैं। कहने को तो भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख तथा ईसाई धर्म। व भारतीयों का एक विशाल बहुमत स्वयं को किसी न किसी धर्म से अवश्य संबंधित बताते है। एंव भारत के संविधान में राष्ट्र को एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र घोषित किया गया है जिसमें प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म या आस्था का स्वतंत्र रूप से पालन और प्रचार करने का अधिकार है। पर इन सब के बावजूद भी कई ऐसे लोग हैं, कई ऐसे समुदाय हैं जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं। चिंतापूर्ण विषय, यह है कि, केंद्रीय स्तर पर भारत में कोई कानून भी नहीं है जो जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में मंजूरी प्रदान करता है। हकीकत में 1954 में, भारतीय धर्म परिवर्तन यानी विनियमन और पंजीकरण बिल को पारित करने के लिए कई प्रयास भी किए गये थे परन्तु भारी विपक्ष के कारण संसद में यह बिल पारित होने में विफल रहा। लेकिन इसके बाद भी इस बिल को पारित करने के लिए राज्य स्तर पर भी विभिन्न प्रयास किए गए। लेकिन कई प्रयासों के बाद भी यह बिल पास नहीं हो पाया। शायद अगर उस दिन यह बिल पारित हो जाता तो, आज इस तरह हमारे देश में लोग एक दूसरे को धर्म के नाम पर, मजहब के नाम पर उनसे दुर्व्यवहार नहीं करते व जबरन धर्म परिवर्तन नहीं करवाते। बहरहाल, भारत के कई राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ अधिनियमों को पारित किया गया है। जिसके मुताबिक उड़ीसा और मध्य प्रदेश में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए विरोधी कानून में अधिकतम दो साल की कारावास और जुर्माना लगाया गया है व तमिलनाडु और गुजरात जैसे विभिन्न अन्य राज्यों में भी इसी तरह के कानून पारित हुए है। जिसमे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए और 298 के तहत संज्ञेय अपराध के रूप में मजबूर रूपांतरण किए गए और इन प्रावधानों के अनुसार जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कारावास के साथ दंडित किया जाएगा।
लेकिन इन सबके बावजूद भी हमारे देश में कई ऐसी जगह है जहां पर जबरन धर्म परिवर्तन के तहत कोई कानून नहीं है। लेकिन हकीकत में तो इस संसार में इंसान इंसानियत के बिना कुछ नहीं है पर मानवता से बड़ा कोई धर्म भी तो नहीं है। क्योंकि कोई भी धर्म हमें एक दूसरे की सेवा करना, एक दूसरों के काम आना, रिश्ते निभाना, छोटे बड़े का भेदभाव ना करना, दुखियों की सहायता करना, जीव-जंतुओं पर दया करने से रोकता नहीं है। किसी से भेदभाव, घृणा ना करना यही हमारा सबसे पहला धर्म है और अगर इस समाज में लोग मानवता के साथ जिएंगे तो यकीनन आधे से ज्यादा मत-भेद अपने आप ही नष्ट हो जाएंगे।
और अगर लोग धर्म को बचाने के लिए ही जिएंगे तो यह कारवां ऐसे ही चलता रहेगा। मजहब के नाम पर यूं ही लड़ते-झगड़ते, छोड़ जाएंगे एक ना एक दिन इस दुनिया को, पर धर्म रह जाएगा यही पर हमेशा के लिए। फिर ओर लोग आएंगे हमारी ही तरह, वो भी अपनी पूरी जिंदगी धर्म को बचाने में ही न्यौछावर कर देंगे। लड़ते रहेंगे लड़ाते रहेंगे पर धर्म को बचाते रहेंगे। फिर एक दिन मिट जाएंगे हम और आप, लेकिन धर्म यही रहेगा सदा-सदा के लिए और मानवता नष्ट हो जाएगी।
-निधि जैन