ऑनलाइन शिक्षण परिवर्तन अनिवार्य
वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रकोप के कारण 22 मार्च से विश्व भर में लॉकडाउन लागू है जिसमें धीरे-धीरे करके रियायतें दी जा रही हैं लेकिन अभी तक शिक्षण संस्थाओं को खोलने की अनुमति नहीं मिली है।
जिसके चलते शिक्षण संस्थानों ने ऑनलाइन क्लासेस की योजना निकाली है। जिसमें छात्रों को गूगल मीट, जूम इत्यादि का उपयोग करके छात्रों को अध्ययन कराने का प्रयास किया जा रहा है। परंतु भारत में 56 फीसदी बच्चे ऐसे है जिनकी पहुंच स्मार्टफोन तक ही नही हैं। यकीनन यह कहना गलत नहीं होगा कि इस संकट की घड़ी में व तमाम अटकलो के बीच ई-लर्निंग यानी ऑनलाइन पढ़ाई एक आवश्यक टूल बनकर उभरा है। लेकिन उन बच्चों के बारे में भी तो सोचना चाहिए जो ऑनलाइन पढ़ाई का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि विभिन्न पाठशालाओं के विद्यार्थी ऐसे हैं जिसमें से सिर्फ 43.99 फीसदी बच्चों की पहुंच ही स्मार्टफोन तक है। अन्य 43.99 फीसदी बच्चों की पहुंच सिर्फ बेसिक फोन तक ही है। वही, 12.02 फीसदी बच्चों की पहुंच ना तो स्मार्टफोन तक की है और ना ही बेसिक फोन तक की। यानी 56.01 प्रतिशत बच्चों की पहुंच स्मार्टफोन तक नहीं है। व देश में 35 करोड़ से ज्यादा विद्यार्थी हैं।जिसमें से ना जाने कितने विद्यार्थी ऐसे हैं जिनके पास ना तो डिजिटल डिवाइड एंव इंटरनेट तक की पहुंच भी नहीं हैं। तो ऐसे में ई- लर्निंग के बजाय विद्यालयों को कोई ओर विकल्प तलाश ना चाहिए ताकि देश का हर विद्यार्थी इस संकट की घड़ी में शिक्षा प्राप्त कर सके। क्योंकि शिक्षण पर हर विद्यार्थी का हक है।
-निधि जैन