अब की बार कौन?

 अमेरिका, दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है, आज से लगभग 231 वर्ष पहले साल यानी 1789 में अमेरिका में पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे लेकिन इन दो सौ वर्षों में अमेरिका के प्रेसिडेंटल इंलैक्शन में बड़े बदलाव हुए हैं। अमेरिका समूचे विश्व के लोकतंत्र की परंपराओं पर ज्ञान देता है व इस समय भी जब बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं तो वहां पर भी चुनावी भाषणों में जंगलराज की बहुत चर्चा हो रही है। अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क से हालही में कुछ तस्वीरें सामने आई हैं।

वह तस्वीरें अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास यानी व्हाइट हाउस की हैं। व्हाइट हाउस के चारों तरफ स्टील के नए बैरियर लगाए गए हैं, एक सुरक्षित घेरा बनाया गया है क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के बाद हिंसा हो सकती है तो इसलिए व्हाइट हाउस की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। आठ हजार फीट से अधिक लंबे बैरियर बहुत मजबूती से लगाए गए हैं। जिन्हें नुकसान पहुंचाना असंभव ही है। हालांकि सुरक्षा के इन इंतजामों की एक और वजह भी सामने आ रही है कि व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप अपने 400 दोस्तों, सलाहकारों और खास लोगों के लिए एक बड़ी पार्टी का आयोजन कर रहे थे और वह इस पार्टी में कोई व्यवधान नहीं चाहते इसलिए यह पुख्ते इंतजाम किये जा रहे हैं।
कहने के तो अमेरिका के राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे शक्तिशाली आदमी कहा जाता है और व्हाइट हाउस को दुनिया की सबसे सुरक्षित इमारत माना जाता है लेकिन हिंसा के डर से सुरक्षा के यह उपाय अमेरिका की नई कमजोरी और डर को सप्षट रूप से जाहिर करते हैं। जब व्हाइट हाउस का ही यह हाल है तो अमेरिका की आम जनता के मन में तो ना जाने कितना डर होगा। बहरहाल अमेरिका के न्यूयॉर्क में बड़ी-बड़ी दुकानों की सुरक्षा के लिए उन्हें लकड़ी के बोर्ड्स से ढंका जा रहा है एवं न्यूयॉर्क में तो दुनिया के टॉप ब्रांड्स की दुकानें हैं, और इन दुकानों को भव्य बनाने के लिए ग्लास यानी शीशे का उपयोग किया गया है और अब इन दुकानदारों को हिंसा होने पर निशाना बनाए जाने का डर बेहद है तो इसलिए यह अपनी खिड़कियां और दरवाजों को लकड़ी के बोर्ड से सुरक्षित कर रहे हैं तथा इसी वर्ष मई महीने में भी न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स और शिकागो में हिंसा हुई थी, तब भी दुकानों को लूट कर उनमें तोड़फोड़ व उनमें आगजनी की गई थी। जिसमें दुकानदारों का लाखों का नुकसान हुआ था।
न्यूयॉर्क के मशहूर टाइम्स स्क्वायर इलाके का भी ऐसा ही हाल देखने को मिल रहा हैं। गौरतलब है कि अगर ऐसी तस्वीरें किसी और देश से आईं होतीं तो यकीनन ही अमेरिका अपने नागरिकों को वहां न जाने की सलाह देता और शायद यह भी कह देता कि उस देश में डर का माहौल है लेकिन अब न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टममेंट के करीब 600 अफसर इस हिंसा से बचने की पूर्ण तैयारी कर रहे हैं। उन्हें पूर्ण रूप से आशंका है कि वहां पर संगठित हमले हो सकते हैं। कैलिफोर्निया में पुलिस अधिकारी बिना छुट्टी लिए हर दिन 12 घंटे की शिफ्ट कर रहे हैं। जो कि अमेरिका के वर्ष 2020 के चुनावों की सबसे दुखद खबर कह सकते हैं। सोचने वाली बात तो यह है कि अमेरिका दुनिया का सबसे सभ्रांत और आधुनिक समाज है, आर्थिक स्थिति के मामले में भी वह दुनिया के लगभग सभी देशों से बेहतर है और तो और वहां का पुलिस डिपार्टमेंट भी लेटेस्ट हथियारों और टेक्नोलॉजी से लैस है लेकिन इन सब के बावजूद भी अमेरिका अपनी राजधानी के लोगों को सुरक्षा का भरोसा नहीं दे पा रहा हैं और इसीलिए वहां के लोग मान चुके हैं कि हिंसा जरूर होगी, व पुलिस पर भरोसा करने के बदले वो खुद अपनी और अपने दुकान को सुरक्षित बनाने की कोशिशें कर रहे हैं।
तथा अमेरिका में करीब 24 करोड़ मतदाता हैं जिनके बैलेट से अमेरिका के अगले राष्टपति का नाम तय होगा एंव कोरोना महामारी के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इस बार मतदाताओं को पोस्टल बैलेट और अरली वोटींग की सुविधा भी दी गई थी, जिस सुविधा का मतदाताओं ने खूब फायदा उठाया है और वोटिंग के दिन से पहले तक 9 करोड़ से अधिक वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग पहले ही कर चुके हैं। बीते दिनों भी अमेरिका के अलग-अलग शहरों में मतदाताओं की लंबी लंबी कतारें देखने को मिली थी। इससे पहले तो अमेरिका में नतीजों के रुझान वोटिंग वाले दिन ही आ जाते थे व उसी दिन यह भी पता चल जाता था कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा परन्तु इस बार पोस्टल बैलेट की वजह से नतीजों में देरी हो सकती है। नतीजों में देरी होने की संभावना इसलिए भी अधिक है क्योंकि पोस्टल बैलेट के वेरिफिकेशन और गिनती में ज्यादा वक्त लगता है।और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो पहले ही पोस्टल बैलेट को लेकर फर्जीवाड़े के आरोप लगा दिये तो ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि यदि नतीजा डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ गया, तो यकीनन ही वह अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में पोस्टल बैलेट की वैधानिकता को लेकर अपील कर सकतें हैं।
हालांकि, अभी तक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। वैसे नेशनल अप्रूवल रेटिंग में बाइडेन लगातार बढ़त बनाए हुए हैं व उन्हें अमेरिका के 52 प्रतिशत लोगों का समर्थन भी मिला है, वहीं डोनाल्ड ट्रंप को सिर्फ 44 प्रतिशत लोगों ने ही पसंद किया हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर सर्वे 77 वर्ष के जो बाइडेन की जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं 74 वर्ष के डोनाल्ड ट्रंप के साथ भी 40 प्रतिशत से अधिक वोटर हैं। जिसका मतलब यह हुआ कि राष्ट्रपति ट्रंप का जो कोर वोटर है वह उनके साथ मजबूती से खड़ा है तो ऐसे में वोटिंग वाले दिन स्विंग वोटर्स की अहमियत बढ़ जाती है और एक अनुमान के मुताबिक हर चुनाव में करीब दस प्रतिशत वोटर ऐसे होते हैं जो आखिरी समय पर निर्णय लेते हैं कि उन्हें किसे वोट देना है।
वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में सर्वे डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की जीत का दावा कर रहे थे, लेकिन जीत डोनाल्ड ट्रंप की हुई। हिलेरी क्लिंटन को डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले तीस लाख अधिक वोट मिले थे परन्तु फिर भी वह चुनाव हार गई थीं। भारतीय मूल के करीब 16 लाख वोटर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाल रहे हैं। अमेरिका के वोटर्स में यह संख्या एक प्रतिशत से भी कम है लेकिन भारतीय वोटर्स की इस चुनाव में अहमियत बहुत अधिक है। डेमोक्रेटिक पार्टी से उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस भारतीय मूल से हैं तो उन्हें चुनावी मैदान में उतारकर डेमोक्रेटिक पार्टी ने भारतीय मतदाताओं को लुभाने की कोशिश भी की है। ड्रेमोक्रेटिक पार्टी का यह कदम वाकई कारगर साबित होगा या नहीं यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा परन्तु जो ओपिनियन पोल सामने आ रहे हैं उन्हें देखकर तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा है। बहरहाल साल 2016 के चुनाव में 16 प्रतिशत भारतीय वोटरों ने ट्रंप का साथ दिया था। व वर्ष 2020 में 28 प्रतिशत भारतीय मूल के लोग डोनाल्ड ट्रंप का साथ देने की बात कह रहे हैं एंव 12 प्रतिशत ओर भारतीय वोटर्स का ट्रंप की ओर झुकाव बढ़ा है। वहीं रिपब्लिकन पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती को आधार बनाकर पर भारतीय वोटर्स को लुभाने का प्रयास कर रहे है। क्योंकि अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आबादी करीब एक प्रतिशत है परन्तु सिलिकॉन वैली के START-UPS में एक तिहाई से अधिक आबादी भारतीय मूल के लोगों की है।
वहीं अमेरिका की हाई-टेक कंपनियों में आठ प्रतिशत से अधिक भारतीय मूल के लोगों ने स्थापित की हैं। और अमेरिका में हर सात में से एक डॉक्टर भारतीय मूल से ही है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता हैं कि अमेरिका के पूरे सिस्टम में भारतीय मूल के लोगों की भूमिका बहुत अहम है व पारंपरिक तौर पर भारतीय मूल के वोटर्स अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक रहे हैं लेकिन पिछले दो चुनाव में इसमें का काफी बदलाव भी आया है।
-निधि जैन

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