कोरोना से बढ़कर जातिवाद

 विश्व वैश्विक महामारी कोरोना के कहर से लगातार जूझ रहा है। पूरे संसार में इस महामारी से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। परंतु इस संकट की घड़ी में इस महामारी ने इंसान को उसका सही मायनों में अक्स दिखा दिया।

इस अदृश्य दुश्मन ने बता दिया कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। जो इस भ्रम में थे कि दुनिया उनकी मुट्ठी में है उन सबका भ्रम इस अदृश्य दुश्मन ने पल भर में ही चकनाचूर कर दिया। जिन्होंने अपनी सुख सुविधा के हिसाब से मन मुताबिक नियम बना डाले, सबको ऊंच-नीच के जाल में बांट डाला, जाति, धर्म, रंग, व लिंग में भेदभाव करा और तो और अपने आप को देवता की श्रेणी में रखा और कुछ को जानवर की श्रेणी से भी नीचे रखा, जातिवाद मंनभेद ने लोगों को एक दूसरे से ही दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया, साथ बैठने की मनाही थी, छूने की मनाही थी व उनकी परछाई से भी एतराज किया जाता था। दुनिया भर में कुछ मुट्ठी भर लोगों ने खुद को महाशक्तिशाली मानकर जाति, रंगभेद करते हुए लोगों के बीच मनभेद को जन्म दे दिया। परन्तु प्रकृति ने किसी में भी कोई भेदभाव नहीं किया। परंतु मौजूदा वक्त में भी लोगो पर जातिगत भेदभाव इस कदर हावी है, कि वह किसी दलित के द्वारा पकाए गए भोजन को खाने से इंकार कर देते है।
कोविड़-19 महामारी ने लोगों की आस्था और विश्वास को झकझोर कर रख दिया है। परन्तु लोगों के मन से जातीवाद का मंनभेद नहीं निकल पा रहा है। तो ऐसे में हमें करोना से ही यह सीख ले लेनी चाहिए, कि अगर वो ही धर्म, रंग व जाती में ही कोई भेदभाव नहीं कर रहा है। तो हम क्यों करे ? ना जाने कब जातियों से ग्रसित यह समाज एक होगा? कब यह समाज सम्मान आदर भाव से एक दूसरे को स्वीकार करेगा ? ना जाने कब यह समाज समता के मूलभूत अधिकार, आर्टिकल 15 को मूल रुप से अपनाएगा ? अगर इस संकट की घड़ी में भी लोगों ने अपने मन से जातिवाद का जहर नहीं निकला, तो यकीनन एक दिन ऐसा सैलाब आएगा जो सब कुछ तबाह कर जाएगा।
-निधि जैन

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