ऑनलाइन ट्रांजेक्शन देगा सुविधा या बढ़ाएगा परेशानी?

 यकीनन ही तकनीक का अधिक उपयोग करने वाले दंपति ऐसा महसूस कर रहे होंगे कि व्हाट्सऐप और फेसबुक ने उनके बीच दूरियां बढ़ा दी है। अपने अपने नेटवर्क में व्यस्त रहना और आपस में संवाद कम करना ही तकनीक का सबसे बड़ा नुकसान है।

आजकल लोगों के बीच तकनीक के चलते जो दूरी आ गई है वो आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है। लगातार आते नोटिफिकेशन और ग्रुप चैट से लोग भूल गए हैं कि इसका उनकी निजी जीवन में बुरा असर पड़ता है। बच्चे उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं क्योंकि वह दिन भर अपने मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। घरवालें आपस में प्यार के दो मीठे बोल के लिए तरस रहे हैं लेकिन वो सोशल नेटवर्किंग बेवसाइट पर उतने ही सक्रिय हैं।
अब आने वाले समय में ऑनलाइन रहते ह‌ुए कुछ भी निजी करना असंभव हो रहा है व जिंदगी खुली किताब की तरह सार्वजनिक हो चली हैं। लोग अपनी पारिवारिक, सामाजिक और दफ्तर की प्राइवेसी को तकनीक के बढ़ते असर के चलते बचा कर नहीं रख पा रहे है। कई घूमने जा रहे हैं तो फोटो शेयर करते हैं, कुछ खाया तो फोटो शेयर, कुछ देखा तो फोटो शेयर। अब लोगों की जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं है, जो फेसबुक पर न जा रहा हो। डिमोनेटाइजेशन के बाद देश कैशलेस सिस्टम की तरफ बढ़ रहा है। शुरुआती परेशानी ने इस राह में हालांकि कई चिंताएं पैदा कर दी हैं। लोग यह सोचने लगे हैं कि क्या ऑनलाइन ट्रांजेक्शन उन्हें सुविधा देगा या उनकी परेशानी और बढ़ा देगा?
कैशलेस इकनॉमी बनाने में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने डिजिटल ट्रांजेक्शन पर कई फायदे की घोषणा की है परन्तु इस पर सवाल यह उठता है कि क्या यह इन सुविधाओं के साथ काफी हैं क्या करेंसी नोट सिस्टम में आने के बाद इसमें आइडेंटिटी चोरी होने की घटनाएं बढ़ तो नहीं जाएंगी? वित्तीय लेन देन में आसानी डिजिटल पेमेंट सिस्टम के लिए सबसे अच्छी बात है कि हमें कैश ढोने, प्लास्टिक कार्ड, बैंक या एटीएम की लाइन में लगने की जरूरत नहीं है। खासतौर पर जब हम सफर में हों तो खर्च करने का यह सेफ और इजी विकल्प है लेकिन साथ ही साथ कई हानिकारक नुकसान भी है।कम आमदनी वाले लोगों के लिए तो इसका कोई फायदा ही नहीं है। बाकी पूरे देश के लिए यह सिंपल और कंस्ट्रक्टिव है। खास तौर पर अगर कोई इमरजेंसी में हों, जैसे हॉस्पिटल वगैरह, तो यह काफी मददगार साबित हो सकता है।
डिजिटल पेमेंट में एक ये भी फायदा है कि इसकी सहायता से हम कहीं भी और कभी भी पेमेंट कर सकते हैं, वहीं पेमेंट करने के लिए वहां होना भी जरूरी नहीं है। बहरहाल कार्ड ट्रांजेक्शन पर सरकार ने हाल ही में 2000 रूपये तक के पेमेंट को सर्विस टैक्स से फ्री कर दिया था। जो कि डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। इसके बाद तो जैसे छूट के लिए घोषणाओं की झड़ी लग गयी। कार्ड से पेट्रोल खरीदने पर 0 .75 फीसदी छूट, रेल टिकट, हाइवे पर टोल, बीमा खरीदने जैसे कई छूट की घोषणा की गयी है। सरकार द्वारा जारी छूट स्कीम और इ वालेट कंपनियों के कैशबैक ऑफर, रिवार्ड पॉइंट्स और लॉयल्टी बेनिफिट को देखकर कहा जा सकता है कि इससे हमारी बचत बढ़ सकती है तथा इ वालेट या कार्ड से ट्रांजेक्शन करने पर यह स्टेटमेंट के रूप में हमारे पास रहेगी। जिससे खर्च पर लगाम लग सकती हैं।
हालांकि क्रेडिट कार्ड या मोबाईल वालेट के गूम होने पर इसे दूर से भी ब्लॉक करना मुश्किल नहीं है। वहीं नकदी मामले में यह नामुमकिन है। डिजिटल ऑप्शन में लिमिटेड सिक्योरिटी है। यह लोगों के लिए भले ही बहुत फायदेमंद न हो लेकिन सच है कि उधार लेना बंद हो जायेगा। दूसरी बात यह है कि दुकानदार से वापसी में समय खर्च नहीं करना पड़ेगा और ठीक उतने ही पैसे चुका पाएंगे, जितने का सामान या सेवा है। गौरतलब है कि जिस तरह किसी भी चीज का फायदा या नुकसान होता है ठीक इसी तरह पेमेंट अच्छा तो है लेकिन साथ ही साथ इसके कई नुकसान भी है।
जैसे कमी शिकायत पर सुनवाई के विकल्प का नहीं होना, क्योंकि देश में शिकायत पर सुनवाई की दशा बहुत खराब है। ऐसे में अगर किसी रिक्शा वाले का आधार आईडी गुम या चोरी हो जाये तो वह क्या करेगा। इसके अलावा कई तरह के फ्रॉड से निपटने के लिए कोई कड़ा कानून भी नहीं है। गत वर्ष ही अक्टूबर में इंडियन बैंकिंग सिस्टम को डेटा चोरी का शिकार होना पड़ा था, और ऐसी ही घटनाएं वित्तीय भूकंप की तरह साबित हो सकती है। तकरीबन सारे फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन डिजिटल होने की वजह से मोबाईल का महत्व बहुत बढ़ गया है और आने वाले समय में तो और बढ़ जाएगा। वहीं इसके खोने का मतलब दोहरा नुकसान है। पेमेंट का कोई दूसरा विकल्प नहीं होने और कैश नहीं होने की वजह से समस्या और गहरा सकती है एंव अगर हम सफर कर रहे हैं, छोटे गांव या शहर में हैं जहां बैंकिंग सुविधा नहीं है तो दिक्कत और बढ़ सकती है।
एक समस्या और यह है कि फोन हमेशा चार्ज होना चाहिए एंव अगर फोन बंद होता है तो किसी ट्रांजेक्शन के बीच में ही डिस्चार्ज हो जाता है या किसी एमरजेंसी में स्विच ऑफ हो जाता है तो हम मजबूर महसूस करेंगे। वहीं देश में साल 2016 तक 34.8 फीसदी लोगों के पास ही इन्टरनेट था। साल 2015 में सिर्फ 26.3 फीसदी के पास स्मार्टफोन था। हालांकि डिजिटल होने के पीछे प्रैक्टिकल दिक्कतें भी हैं। लोगों को डिजिटल होने की तरफ मोड़ने में सबसे बड़ी समस्या मानसिक है क्योंकि इन तीन पीढ़ियों को एक साथ डिजिटल बनाने जा रहे हैं। बुजुर्ग लोगों के लिए इसमें दिक्कतें ज्यादा हैं और अगर उनके पास नकदी नहीं है। एप डाऊनलोड नहीं कर पा रहे हैं तो वह असहाय महसूस करेंगे व जिन लोगों को तकनीक की समझ नहीं है उनके लिए यह एक चुनौती की तरह होगा। ट्रांजेक्शन करने में उन्हें दूसरे लोगों की तुलना में अधिक समय चाहिए। कार्ड और मोबाईल वालेट से ट्रांजेक्शन करना सुविधाजनक तो है, लेकिन यह लोगों को अधिक खर्च करने की लत लगा देगा। वहीं कैश खर्च करने में लोग हिचकते हैं बजाय कार्ड से खर्च करने के।
यह उन लोगों की मुसीबत बढ़ा देगा जो खर्च पर कार्ड की वजह से कंट्रोल नहीं कर पाते और यह एक बड़ा कारण है जब लोगों का खर्च बढ़ जायेगा और उनका बजट बेकार साबित हो जायेगा। डिजिटल पेमेंट की तरफ शिफ्ट में एक बड़ी बाधा यह मानी जा रही है कि सिस्टम में दोबारा उतनी नकदी आ रही है जितनी पहले थी। अगर ऐसा होता है तो बहुत से लोग नकदी के इस्तेमाल को ही प्राथमिकता देंगे क्योंकि उन्हें अपनी आदत तोड़ने में मुश्किल आएगी।
-निधि जैन

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