समाज में कैसे दखल दे रहा है लाउडस्पीकर, शोर का स्वास्थ पर पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव
निरंतर बढ़ते प्रदूषण से मानव के साथ-साथ जीव जन्तुओं पर भी इसके दुष्प्रभाव पढ़ रहें है और तो और अनेक कारणों से वायु प्रदूषण भी लगातार बढ़ता जा रहा है। जिससे जन स्वास्थ्य के समक्ष खतरे बढ़ते जा रहे हैं। यातायात के साधनों से लेकर फैक्टरियों इत्यादि तक से निकलने वाले ध्वनि प्रदूषण को हमें इसलिए भी बर्दाश्त करना पड़ता है, क्योंकि विकास की वर्तमान परिभाषा को सार्थक करने के लिहाज से ऐसा करना काफी हद तक आवश्यक भी है। इसके अलावा, कई ऐसे अन्य कारक भी हैं जिनसे ध्वनि प्रदूषण की गंभीरता बढ़ रही है।
बहरहाल, ऐसे में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर से जुड़े विवाद के साथ विचार मंथन भी आरम्भ हो गया है कि कहीं धर्म की आड़ में लाउडस्पीकर का बढ़ता चलन, मानव के जीवन के अधिकार में खलल तो नहीं डाल रहा है एवं जिस प्रकार देश के सभी विधान समूचे लोगों पर समान रूप से लागू होते है, उसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण संबधी विधान भी सभी पर समान रूप से लागू होने चाहिए।गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2020 में फैसला किया था कि अजान, इस्लाम का एक अंग है, लेकिन लाउडस्पीकर लगाकर, अजान करना इस्लाम का हिस्सा नहीं है। ठीक इसी तरह हिन्दूओं के धार्मिक स्थलों पर भी लाउडस्पीकर लगाकर, अराधना करने का कोई जायज कारण नहीं है। ईश्वर की आराधना में शोर-शराबे और लाउडस्पीकर के बजाय शांति से ध्यान एकाग्रित करके भी पूजा-पाठ किया जा सकता है लेकिन चिंता की बात यह है कि धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में जो ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाता है वो वास्तव में हमारे सभ्य और शिक्षित समाज में चौंकाने वाला है। चूंकि लाउडस्पीकर, अर्थात ध्वनि विस्तारक यंत्र एक हालिया वैज्ञानिक नवाचार है, इसलिए इस तरह के यंत्र के उपयोग का किसी भी पवित्र ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं मिलता है व लाउडस्पीकर का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी भी प्रकार से धर्म से कोई संबंध नहीं है। यह तो हम सबकी मानसिकता ही धीरे-धीरे ऐसी बनती गई है कि अब बिना लाउडस्पीकर के ईश्वर की पूजा, आराधना ही नहीं की जा सकती।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) ए और अनुच्छेद 21, प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है परन्तु निरन्तर बढ़तावा ये शोर, मानव जीवन व जीव-जंतु एवं पेड़-पौधों को भी प्रभावित करने के साथ-साथ जीवनचर्या में भी बाधा बन रहा है और ऐसा भी नहीं है कि भारत में विधायिका और कार्यपालिका ध्वनि प्रदूषण के खतरे से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। तमाम कानून बनाए गए हैं और कानून के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्यपालिका द्वारा नियम भी बनाए गए हैं लेकिन केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, जब तक उसे धरातल पर लागू नहीं किया जाएगा। बहरहाल, जब भी कभी किसी चीज को धर्म से जोड़ दिया जाता है तो उसकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है और उस पर कार्रवाई करना कठिन हो जाता है। इसी वजह से कठोर कानून के बावजूद, जनता को ध्वनि प्रदूषण से राहत नहीं मिल पा रही है। ऐसे में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध के लिए एक देश-एक कानून होना चाहिए और सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू भी होना चाहिए, क्योंकि धर्म के नाम पर किसी भी व्यक्ति के जीवन के अधिकार को नहीं छीना जा सकता।
उल्लेखनीय है कि, यह केवल उत्तर प्रदेश की समस्या नहीं है अपितु यह देशव्यापी समस्या है। लगातार बढ़ता हुआ ध्वनि प्रदूषण, जीवनशैली में बाधा खड़ा कर रहा है। अत्यधिक शोर के कारण हृदय, मस्तिष्क, किडनी एवं यकृत को काफी नुकसान होता है। मनुष्य में भावनात्मक विसंगतियां उत्पन्न हो जाती हैं। कार्य करने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी होने लगती है और लंबे समय तक अध्ययन करने के बाद पाया भी गया है कि ध्वनि प्रदूषण के कारण शरीर का मेटाबालिक अर्थात उपापचयी प्रक्रियाएं बुरी तरीके से प्रभावित होती हैं। जिससे एड्रीनल हार्मोन का स्राव बढ़़ जाता है। नतीजन धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है, जिस कारण हार्टअटैक आने की सम्भावना बढ़ जाती है और इसलिए ही अस्पताल और आवासीय क्षेत्रों के पास किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि, राजनीतिक रैली या विवाह समारोह आदि के जरिये शोर की अनुमति कदापि नहीं देनी चाहिए। केवल उन्हीं समूहों को अनुमति दी जानी चाहिए जो ध्वनि प्रदूषण प्रतिबंधों का पालन करने के लिए सहमत हों।
अत: सभी प्रकार के संकटों को देखते हुए जल्द से जल्द बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाने के लिए समाज को आगे आना चाहिए और सरकार के साथ, हाथ से हाथ मिलाकर ध्वनि प्रदूषण जैसे मुद्दे पर साथ देना चाहिए एवं उचित यही होगा कि सभी संप्रदाय के लोग लाउडस्पीकर को धर्म से जोड़ कर न देखें तथा इस पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने के लिए बाबत मिलकर पहल करें।
बहरहाल, हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि लाउडस्पीकर हिंदू, मुस्लिम या किसी भी धर्म का प्रतिबिंब नहीं है, क्योंकि ईश्वर से जुडऩे के लिए किसी आधुनिक यंत्र की कोई दरकार नहीं होती है। इसलिए लाउडस्पीकर के त्याग अथवा उसकी ध्वनि को धीमा करने पर आपत्ति जताना सही नहीं है।
हालांकि, मंदिरों में सुबह और शाम लाउडस्पीकर बजाना धार्मिक कृत्य माना जाता है, जबकि वास्तविकता में यह बच्चों के पढ़ने का समय होता है। इसी प्रकार एक सवाल सदैव से उठता रहा है कि, मनुष्य को नमाज, पूजा, भक्ति एवं रोजे में सुबह से पहले भोजन लेना होगा, उसे लाउडस्पीकर पर कहने का क्या औचित्य है?
हालांकि लाउडस्पीकर केवल मस्जिदों व मंदिरों पर ही नहीं बजते, बल्कि अन्य धार्मिक स्थलों पर भी खूब बजाए जाते हैं परन्तु अब धार्मिक संगठन के लोगों को सोचना होगा कि क्या ऐसे कृत्य समाज के लिए कल्याणकारी हैं? और अगर नहीं, तो फिर लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध का सहयोग करना चाहिए, न कि इसका विरोध।
-निधि जैन