मस्जिद-कभी-मंदिर-था, ये बहस कब तक?

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने का दावा, ताजमहल को तेजो महालय मंदिर बताना, बंद 22 कमरों को लेकर विवाद, कुतुब मीनार परिसर की कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद में पूजा अर्चना की मांग, दिल्ली जामा मस्जिद के नीचे देवी-देवताओं की मूर्ति का दावा तथा मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में याचिका पर सुनवाई।

गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब, तीन साल बाद भारत में वापस एक बार फिर 'ये-मस्जिद-कभी-मंदिर-था' पर बहस हो रही है। अचानक अदालतों में याचिकाओं की बाढ़-सी आ गई।

ऐसे वक़्त में जब यूक्रेन-रूस युद्ध से समूचे विश्व में सामरिक बदलाव हो रहे हैं, कोविड़-19 महामारी से 62 लाख लोगों की मौत के बाद भी वायरस का ख़तरा बना हुआ है एवं साल 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से दुनिया भर में सबसे अधिक लगभग 17 लाख लोगों की मृत्यु हो गई। जब देश इन गंभीर, आर्थिक, सामाजिक और वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब भारत में हिंदू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, 400-500-600 या हज़ार साल पहले किसने, कितने, मंदिर तोड़े, बनाए और वर्तमान में इनका क्या हो, इस पर बहस ज़ोर पकड़ रही है।

सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफॉर्म तथा टीवी के तमाम न्यूज चैनलों पर इसी बात पर बहस हो रही हैं और बहस के केंद्र में काशी की ज्ञानवापी मस्जिद के मामलें ने तूल पकड़ लिया हेै। दावा किया जा रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह कभी मंदिर हुआ करता था। मंदिर को तोड़कर उसे मस्जिद में तब्दील किया गया। हिन्दु पक्ष के विभिन्न लोगों का दावा है कि वहां मंदिर होने के अनेक प्रमाण हैं, जिसको पेश करके सुप्रीम कोर्ट में तमाम दलीले दी जा रहीं हैं। हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पर मंदिर हुआ करता था लेकिन मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यहां पर मस्जिद ही थी। जिसकी बहस दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

इसी के साथ ब्रिटिश लाइब्रेरी में, विश्वनाथ मंदिर की तस्वीरों के साथ दी गई जानकारी में भी ज़िक्र किया गया है कि 17वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने मंदिर को तबाह कर दिया था और आज के मंदिर को 1,777 में इंदौर की अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया था तथा काशी और मथुरा का मंदिर औरंगज़ेब के ही हुक़्म से तोड़ा गया था।

बहरहाल जहां एक तरह, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मस्जिद में गए, जांच के लिए विभिन्न अधिकारी व वकील को रोका जा रहा था। दोनों पक्ष, आपस में एक दूसरे पर हमलावर थे तो वहीं कुछ लोगों का मानना यह भी था कि, सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालत को सीधी भाषा में बोलना चाहिए कि वो किसी भी याचिका को सुनते वक़्त 1991 (उपासना स्थल, विशेष प्रावधान क़ानून) के क़ानून का पालन करें। जो कहता है कि 1947 में जो धार्मिक उपासना स्थल जिस स्थिति में थे, आज भी वो वैसा ही बनें रहेगें और किसी भी न्यायिक उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

हालांकि, ज्ञानवापी मस्जिद का निरीक्षण होने के बाद दावा किया जा रहा है कि परिसर में शिवलिंग मिला है तथा हिंदू धर्म के मंदिर में मौजूद घंटे एवं तमाम कलाकृतियां मिली है जो मस्जिद में नहीं होती है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने, 'शिवलिंग' वाली जगह को सील कर दिया है और लोग, पहले के ही तरह मस्जिद में नमाज अदा करते रहेंगे।

लेकिन चिंताजनक बात यह हैं कि जब देश पहले से ही कई सांप्रदायिक मसलों का सामना कर रहा है, तब एक और 'मस्जिद-पहले-मंदिर-था' आयाम जोड़ने के ख़तरनाक नतीजे हो सकते हैं तथा आज की तारीख़ में इतिहास की जटिलता को समझना और समझाना शायद ही आसान है तो ऐसे माहौल में ये सवाल पूरे समाज को अपने आप से पूछना चाहिए कि इस तरह का ऐतिहासिक कनेक्शन या संशोधन आप कहां तक करेंगे? इतिहास की सुई को कितना पीछे ले जाएंगे और इससे क्या हासिल करेंगे?

-निधि जैन


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वर्ष 2020 की यादें

कौन भरेगा 814 करोड़ का नुकसान?

अब कावासाकी से भी लड़ना है