इंटरनेट! बिन जीवन अधूरा
वैश्विक महामारी कोविड़-19 के कारण हर एक कार्य में बदलाव आया हैं चाहे वह स्कूलों में पढ़ाई का तरीका ही क्यों न हो। कोरोना काल में स्कूल बंद होने से सभी कक्षा के छात्र बीते एक साल से घर पर है। स्कूल की कक्षाएं ऑनलाइन होने की वजह से स्वजन ने उन्हें मोबाइल फोन दिलवा दिया है। हालांकि ऑनलाइन क्लास के बाद बच्चों को इंटरनेट पर गेम की लत लग गई है। स्वजन के समझाने पर तरह तरह के बहाने छात्रों के पास मौजूद रहते हैं। घर वाले निगरानी करने लगे तो चोरी-छिपे गेम खेलना, खाने-पीने से ध्यान हटना, बात-बात पर जवाब देना अब तो अधिकांश बच्चों की आदत में शुमार हो गया हैं। बहरहाल ऐसा कोई एक बच्चे का हाल नहीं है, ऐसे न जाने कितने परिवारों में यह रोज का किस्सा हो गया है। दरअसल, यह वायरस केवल मरीज और उनके परिवार के सदस्यों के मन-मस्तिष्क ही प्रभावित नहीं कर रहा है बल्कि बच्चों पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इसकी प्रमुख वजह है मोबाइल पर लगातार गेम खेलना। चिकित्सकों के मुताबिक यह एक मनोरोग है, जिसे आईडी यानी इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर कहते हैं। शहरभर में इस समय काफी बच्चे इससे जूझ रहे हैं। यह व्यवहार से जुड़ी बीमारी है। वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी गेमिंग डिसऑर्डर को अंतरराष्ट्रीय बीमारी की श्रेणी में शामिल किया था। इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर इससे मिलती-जुलती बीमारी है, जिसे अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन ने सबसे पहले बीमारी के रूप में स्वीकारा था। इस श्रेणी को आइसीडी-11 भी कहते हैैं, जिसमें इलाज के लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। इस बीमारी में बच्चा यह तय नहीं कर पाता कि वह कितना समय डिजिटल या मोबाइल गेम खेलकर बिताए। गौरतलब है कि अगर समय रहते इस बीमारी पर काबू नहीं पाया गया तो बच्चों में यह बीमारी तेजी से बढ़ती रहेगी जिस के दुष्प्रभाव आने लाजमी है।
निधि जैन, लोनी गाजियाबाद