बलत्कार को राजनीति से ना जोड़े
हाथरस की घटना इस समय मीडिया की हेडलाइंस बनी हुई है लेकिन महिलाओं पर अत्याचार की ऐसी ढेरों घटनाएं हैं जिन्हें कभी मीडिया में स्थान ही नहीं मिल पाता वह खबरें बन्द कमरे में ही सिमट के रह जाती हैं।
यूपी की हाथरस की घटना को लेकर कई न्यूज चैनल लगातार खबरें दिखा रहे हैं, परन्तु बलरामपुर और राजस्थान के अलग-अलग शहरों में रेप की कई घटनाओं पर उतनी बात नहीं हो रही और अगर हाथरस व बाकी घटनाओं के मीडिया कवरेज की तुलना करें तो यह अनुपात 99 और 1 का होगा। ऐसे में यह ही सवाल उठता है कि हाथरस की घटना में ऐसा क्या था जिस पर मीडिया का इतना ध्यान चला गया।
जो नेता और मीडिया दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर हाथरस तक गए पर हाथरस से 500 किलोमीटर दूर बलरामपुर क्यों नहीं जा पाए? आखिर मीडिया ने बलरामपुर की घटना को क्यों भुलाया? गौरतलब है कि जब हम इस सवाल का जवाब भी ढूंढेंगे तो अंत में सोशल मीडिया का नाम ही सामने आएगा क्योंकि हाथरस के मामले में भी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया की ताकत का दुरुपयोग किया गया हैं। सोशल मीडिया के जरिए ही हाथरस की घटना के बारे में कई गलत जानकारियां फैलाई गईं। इसे सोशल मीडिया पर ट्रेंड कराया गया। जिसे देखते ही देखते कई न्यूज चैनलों ने भी वह झूठी खबरें ही दिखानी शुरू कर दीं, जो सोशल मीडिया पर फैलाई गई थीं।
जो बेशक़ ही आपत्तिजनक हैं। बहरहाल गौर किया जाए तो हाथरस और बलरामपुर दोनों ही जगहों पर पीड़िता दलित है, हाथरस की तरह बलरामपुर में भी पीड़िता के साथ बर्बरता हुई और उसकी मौत हो गई, हाथरस की घटना में भी रेप की पुष्टि नहीं हुई है, जबकि बलरामपुर में बलात्कार की पुष्टि हो चुकी है और दोनों ही मामलों में अधिकतर आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं। हाथरस के मुख्य आरोपी का नाम संदीप है, जबकि बलरामपुर के मुख्य आरोपियों का नाम शाहिद और साहिल है व हाथरस की ही तरह बलरामपुर में भी पुलिस ने रात के अंधेरे में पीड़िता का अंतिम संस्कार करवा दिया। हाथरस और बलरामपुर, दोनों ही जगहें उत्तर प्रदेश में हैं दोनों ही जगह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार हैं लेकिन प्रश्न तो यह है कि आखिर क्यों बलरामपुर के मामले में राहुल गांधी ने योगी आदित्यनाथ को छोड़ दिया? तथा प्रशासन चाहता था कि वह लड़की को बड़े अस्पताल ले जाया जाए, लेकिन परिवार वाले इसके लिए बहुत देर से तैयार हुए एंव उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में कई सबूत भी पेश किए हैं जिनमें कई सोशल मीडिया पोस्ट, नेताओं के भाषण और मीडिया की रिकॉर्डिंग्स शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया कि हाथरस की घटना की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की गई है ताकि पूरी सच्चाई सामने आ सके। वैसे उत्तर प्रदेश पुलिस की अभी तक की जांच में कट्टरपंथी संगठनों के नाम भी सामने आ रहे हैं। जिसके बाद मथुरा से चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से एक दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी का छात्र है। जिस पर पुलिस का कहना है कि कट्टरपंथी संगठनों के लोग हाथरस के मुद्दे पर सोशल मीडिया के जरिए ही माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे एंव फेक सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए हाथरस की घटना को जातीय रंग दे दिया गया व पीड़ित और आरोपी एक-दूसरे को पहले से जानते थे और उनके बीच में फोन पर बातचीत भी होती थी। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में गैंगरेप के मामले में पुलिस की जांच जारी है।
अवश्य ही बलरामपुर की घटना दिल दहलाने वाली है, परन्तु झूठ के शोर में यह सच्ची खबर भी कहीं दबकर रह गई। बलरामपुर में कोई जातीय एंगल नहीं था, इसलिए राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी वहां जाना उचित नहीं समझा। मीडिया के लिए भी यह टीआरपी वाली खबर नहीं थी। इसलिए ही बलरामपुर में मीडिया का वैसा मेला नहीं लगा, जैसा हमने हाथरस में देखा। उस घटना के बारे में शायद ही किसी बड़े फिल्मी सितारे ने कोई ट्वीट भी किया हो।
बलरामपुर की पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए किसी ने भी सोशल मीडिया पर कोई मुहिम नहीं चलाई। महिलाओं के खिलाफ होने वाले हर एक अपराध को गंभीर माना जाना चाहिए। ऐसे मामलों में सरकारों, समाज और मीडिया को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाओं की आड़ में कोई समाज में नफरत फैलाने की कोशिश न कर पाए और हर मासूम लड़की को इन्साफ मिल सकें।
-निधि जैन