लड़की हूँ जिस्मों का खेल नहीं
डर जाता है हर बाप जब उसकी बेटी जवान होती है क्योंकि कोई नहीं जानता किस इंसान की नियत कब खराब हो जाए। दरिंदों को तो बस अपनी हवस भुजानी होती है, इससे चाहें किसी की रूह का कत्ल ही क्यों न हो। तुम्हारा तो मन भर गया न, रूह को एक बार छलनी करके मन नहीं भरा तो आज फिर से किसी के जिस्म को छलनी करने के बारे में तो नहीं सोच रहें। आज भी ड़रना नहीं तुम कुछ गलत नहीं कर रहें, उसके चीखने चिल्लाने से तुम्हें क्या फर्क पढ़ता है, तुम्हारी तो हवस मिट गई न। तुम्हारी गलती की वजह से तुमने तो पापा की लाड़ली को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां सिर्फ तुम्हारे कारण वह मरने को तैयार है, अपने सारे सपनें खत्म करने को मजबूर हैं।
बहरहाल बलात्कार भारत में महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 32,033 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, और प्रतिदिन औसतन 88 मामले दर्ज हुए। 2019 में प्रत्येक दिन महिलाओं और लड़कियों पर बलात्कार, हमले और हिंसा के प्रयास में 3 नाबालिगों के साथ बलात्कार के शिकार किशोरियों को बलात्कार के मामले में भारत में उच्च स्थान पर रखा गया। भारत को बलात्कार की सबसे कम प्रति व्यक्ति दर वाले देशों में से एक माना गया है। सरकार भी बलात्कार के रूप में शादी के झूठे वादे पर प्रतिबद्ध यौन संबंध को वर्गीकृत करता है। बलात्कार की कई घटनाओं के बाद व्यापक मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और स्थानीय और देशव्यापी सार्वजनिक वातावरण को ट्रिगर किया। जिसने सरकार को बलात्कार और यौन उत्पीड़न के अपराधों के लिए अपने दंड संहिता में सुधार करने को विवश किया। एनसीआरबी 2019 के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में भारतीय राज्यों ने सबसे अधिक बलात्कारों की सूचना दी। वहीं हिंदी हार्टलैंड क्षेत्र, उत्तर भारत, जैसे कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में अन्य राज्य , महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। जिनमें से 11 फीसदी पीड़ित दलित समुदाय से हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दलित समुदायों के प्रति यौन हिंसा में वृद्धि देखी गई है, जहां इसे उत्पीड़न के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। उत्तर प्रदेश में बलात्कार के जितने केस दर्ज हुए, उनमें से 18 फीसदी पीड़ित दलित महिलाएं ही हैं तथा पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के बलात्कार का खतरा 44 फीसदी तक बढ़ गया है। संस्था के आंकड़ों के मुताबिक, 2010 से 2019 के बीच पूरे भारत में कुल 3,13,289 बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं।
दिल्ली में 2012 में निर्भया के साथ बेहद क्रूरतापूर्ण ढंग से सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना हुई थी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था लेकिन इस घटना के बाद ऐसा लगा था कि हमारे देश की संसद जागेगी और आरोपियों के खिलाफ सख़्त कानून लाएगी लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्रिमिनल लॉ में संशोधन करते हुए बलात्कार और यौन हिंसा के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया और इसी क्रम में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज अधिनियम में भी संशोधन करके 12 साल तक के छोटे बच्चों के बलात्कार के मामले में मौत की सजा का प्रावधान किया गया परन्तु दंड के कड़े प्रावधान भी अपराधियों को रोकने में सक्षम नहीं हुए हैं। लोगों में कानूनों का खौफ शुन्य ही हो रहा हैं। हालांकि आंध्र प्रदेश के दिशा कानून की तर्ज पर महाराष्ट्र सरकार शक्ति कानून लाने की तैयारी में है। महाराष्ट्र कैबिनेट ने इस कानून के ड्राफ्ट को हरी झंडी भी दिखा दी है।और विधानसभा के आने वाले शीतकालीन सत्र में इसे पेश किया जाएगा। महिला और नाबालिग बच्चों पर अत्याचार के बेहद गंभीर और घृणित मामलों में इस कानून के तहत सजा ए मौत या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। जो बेहद जरूरी है। साथ ही सोशल मीडिया के जरिये बढ़ते उत्पीड़न मामलों पर भी और सख्ती बरती जानी चाहिए। तथा इस कानून में कहा गया है कि 21 दिन के अंदर करवाई का प्रावधान करके ऐसे मामलों को फास्ट ट्रैक पर लाया जाएगा लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ कानून में संशोधन कर देने से महिला और बच्चे सुरक्षित होंगे?महाराष्ट्र में साल 2019 -20 की आर्थिक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में 4320, साल 2018 में 4974 और 2019 में 5412 रेप के मामले सामने आए हैं तो वहीं पिछले तीन सालों में राज्य में छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न और पति या ससुरालवालों की क्रूरता की शिकार बनी महिलाओं की संख्या में बड़ी बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं के प्रति अपराध का ग्राफ कम होने की बजाय लगातार ऊपर जा रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की तरफ से जारी 2019 के आंकड़ो के अनुसार महाराष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ साइबर स्टॉकिंग और धमकाने के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं। वहीं पिछले तीन साल में इस तरह के 1,126 मामले दर्ज किए गए हैं और देश भर में 2017 से 2019 तक महिलाओं के खिलाफ साइबर क्राइम के एक तिहाई मामले महाराष्ट्र में रिपोर्ट किए गए हैं तो वहीं 184 मामलों के साथ आंध्र प्रदेश दूसरे और 97 मामलों के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर है। जो बेहद चिंताजनक है।
गौरतलब है कि शक्ति एक्ट के अंतर्गत हर जिले में स्पेशल कोर्ट, विशेष पुलिस टीम का प्रस्ताव व पीड़ित महिला और बच्चों के लिए विशेष संस्था का गठन किया जाएग एंव एसिड हमले के अपराध को गैर जमानती किया जाएगा। साथ ही सजा 10 साल से कम नहीं होगी लेकिन इसके बावजूद तेजी से बढ़ते अपराध को देखते हुए मौत की सजा और पीड़िता को आर्थिक मुआवजे का प्रावधान होगा। जिसमें जुर्माना 10 लाख तक का होगा, जो कि पीड़िता की प्लास्टिक सर्जरी और चेहरे के ऑपरेशन के लिए खर्च किए जाएंगे। वहीं इस प्रस्ताव में गैंग रेप या रेप मामले में 16 साल की कम उम्र की पीड़िता रही तो 12 साल की सजा का प्रावधान होगा तथा सोशल मीडिया सहित संचार के किसी भी माध्यम के जरिए महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार या शोषण के मामले में कम से कम 2 साल की सजा और 1 लाख रुपये का जुर्माना होगा। यहां तक कि ऐसे मामलों में मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स और सरकारी कर्मचारी जांच में सहयोग ना करे तो उनको जेल या फिर जुर्माना लगाया जा सकता है। हालांकि राज्य में बढ़ते महिला अत्याचारों पर कठोर कानून बनाने के लिए विपक्ष का दबाव बढ़ रहा था। ऐसे में गृहमंत्री अनिल देशमुख की अध्यक्षता में पांच मंत्रियों की समिति गठित करने का निर्णय लिया गया। जिसमें महिला व बाल कल्याण मंत्री यशमोती ठाकुर, स्कूली शिक्षामंत्री वर्षा गायकवाड़, पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे और परिवहन मंत्री अनिल परब भी शामिल थे। इस समिति ने अन्य राज्यों के कानूनों का अध्ययन कर सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी जिसके आधार पर शक्ति कानून का ड्राफ्ट बना। वैसे शक्ति कानून लागू होने के बाद इसका सकारात्मक असर जरूर देखने को मिलेगा। गौरतलब है कि बढ़ते अपराधों के खिलाफ सरकार को सख़्त से सख़्त कानून बनाने चाहिए ताकि बेरहम लोग गलत करने से पहले सौ बार सोचे।
- निधि जैन