सच कब तक छुपाया जाएगा?
-By Nidhi Jain
बेशक़ ही लोकतंत्र की सफलता या विफलता उसकी पत्रकारिता पर निर्भर करती है लेकिन जिस तरह से अब विश्व में निष्पक्ष पत्रकारिता दिखाने और बताने पर प्रतिबंध लगता जा रहा है वो बिलकुल भी जायज़ नहीं है बहरहाल कहते है न असली ताकत मुसीबत में ही क्यों न हो लेकिन वह अपने देश के बारे में सोचने से, मरते दम तक अपना कर्तव्य निभाने में ड़रती नहीं है, पत्रकार मनदीप बिल्कुल इस बात पर खड़े उतरे हैं, पुलिस जीप के अंदर से ये नहीं कहा कि मेरी जान को ख़तरा है, बल्कि कहा भी तो "FreePress"। जो बेशक़ काबिले तारीफ़ है। ये दिखाता है कि पत्रकारिता के लिए अभी भी कुछ लोगों में सच्चाई, साफ नियत और जुनून बाकी हैं। कुछ लोग जमीन को आसमान और आसमान को जमीन समझते हैं परन्तु इनके अंतर्मन में स्वतंत्र विचारों को बेड़ियों से जकड़ने की उत्कंठा होती है। किसी पत्रकार के स्वतंत्र विचार कभी कैद नहीं किए जा सकते हैं व हुक्मरानों को प्रेस की मर्यादा का उल्लंघन करने से बचना चाहिए। आलम तो यह है कि सरकार मनदीप पुनिया पर केस बनाने को तैयार है एंव उसे मारेंगे और पीटेंगे लेकिन दीप सिद्धू के नाम पर दिल्ली पुलिस के काबिल अफ़सर मौन व्रत पर चले जाते हैं। वहीं दीप फ़ेसबुक पर लाइव आकर दिल्ली पुलिस वालों को चुनौती दे रहा है और जो पत्रकार देश को सच्चाई दिखाना चाहता हैं उसको जेल में डाला जाता है, आखिरकार ये कहां का न्याय हैं? पत्रकारिता का दम्भ भरने वाले संपादक को तो अललाते हुए दुनिया देख चुकी है। अर्नब के लिए इमरजेंसी सुनवाई करने वाला सुप्रीम कोर्ट मनदीप पूनिया पर मौन क्यों है? यह अवश्य ही लोकतंत्र के अंदर ठीक नहीं है, इस बारे में कुछ सोचना चाहिए पत्रकारों की आवाज ऐसे नहीं दबानी चाहिए, आखिरकार लोकतंत्र को तानाशाही में क्यू बदला जा रहा हैं।आम किसान मजदूर, सरकार व अन्य विचार धारा के लोगों की बात सुने लेकिन उसे दबाने का काम न करें। उल्लेखनीय है कि सिंघु बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन स्थल पर तैनात पुलिसकर्मियों के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने के आरोप में एक स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी है कि पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि पत्रकार को एक दिन पहले हिरासत में लिया गया था। स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर बीते दिनों दोपहर म्यूनिसिपल मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। इसके बाद उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। उनके खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 186, 323 और 353 के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं। वहीं इससे पहले पुलिस ने कहा था कि उन्होंने शुक्रवार को हुई हिंसा के बाद सीमा पर अवरोधक लगाए थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई उसे पार न कर पाए परन्तु पुलिस ने आरोप लगाया था कि पत्रकार समेत कुछ लोगों ने अवरोधक हटाने की कोशिश की तथा पत्रकार ने वहां पुलिस कर्मियों के साथ दुर्व्यवहार भी किया। सिंघु बॉर्डर पर किसानों और स्थानीय निवासी होने का दावा करने वाले लोगों के बीच झड़प हो गई थी। इस दौरान दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर पथराव किया था। सिंघु बॉर्डर नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन का प्रमुख स्थलों में से एक स्थल बना हुआ है। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दो महीने से अचल रहा किसान आंदोलन में बेशक़ राजनीतिक पार्टी कूद पड़ी हैं और अपना उल्लू सीधा करने में लगी हुई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर सभी विपशी दल ने पत्रकार की गिरफ्तारी पर अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी हैं। गौरतलब है कि खबर अवशय ही वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब तो विज्ञापन होते है। मकसद तय करना दम की बात है व मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते एंव स्वतंत्र विचारों को कभी बेड़ियों में नहीं जकड़ा जा सकता। पत्रकारों की आवाज़ को बेश़क ही दबाया जाता है, उसकु चुप किया जाता है और कई न कई उसे मारने तक की साजिश रची जाती है लेकिन जब तक एक स्वतंत्र पत्रकार इसमें है यह आपको जिंदा रखेगी।